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चतुर्थ भाई ने गिरनार की यात्रा की। नेमिदास ने ग्वालियर में भी मूर्तियों का निर्माण एवं मंदिर बनवाया। रइधू का आशीर्वाद उन्हें प्राप्त था अतः धार्मिक एवं साहित्यिक कार्यों में वे सदा इनके साथ रहते थे। ___ रइधू ने कई महत्वपूर्ण सूचनाएं नेमिदास के संबंध में दी हैं। इनमें से दो सूचनाएं बड़ी रोचक हैं। प्रथम तो यह है कि नेमिदास के पुत्र ऋविराम को उस समय पुत्र रत्न की प्राप्ति हुई जब वे स्वयं निर्मित जिन-बिम्व-प्रतिष्ठा के अवसर पर जिन प्रतिमा पर तिलक लगा रहे थे। अतः उसी उपलक्ष में साहू ने अपने उस नवोत्पन्न पोते का नाम 'तिलक' रख दिया था।
दूसरी मनोरंजक घटना यह है कि साहू नेमिदास के दूसरे भाई साधारण को जब वीरदास नामक द्वितीय पुत्ररत्न की उपलब्धि हुई तब उन्होंने प्रसन्नता पूर्वक रइधू द्वारा विरचित 'पुण्णासवुद्धा' को हाथी पर प्रतिष्ठित करके बड़े ही समारोह के साथ नगर में घुमाया था।
श्रमणभूषण श्री कुन्थदासजी 'जिमन्धर चरित्र' की रचना महाकवि रइधू श्रावक कुन्थदास पद्मावती पुरवाल के निमित्त लिखा था। कुन्थदास महाकवि रइधू का अनन्य भक्त था। वह यद्यपि लक्षाधिपति था फिर भी उसने भौतिक सम्पत्ति को सदा तुच्छ समझा था। जिन वाणी को वह सदा सर्वोपरि समझता रहा, इसलिए उसने अपने बाएं स्वर्ण कुण्डल न पहिनकर 'कौमुदी कथा प्रबन्ध' रूपी कुण्डल और माथे पर ‘महापुराण' रूपी मुकुट धारण किया था। तात्पर्य श्री कुन्थदास ने 'कौमुदी कथा प्रबन्ध' और 'महापुराण' महाकवि रइधू से अपने लिये लिखवाया था। तत्पश्चात् उसने 'जिमन्धर चरित्र' लिखकर दायां कान जो सूना-सूना था, उसके लिये 'जिमन्धर चरित्र' रूपी कुण्डल अपने दाएं कान में धारण कर अपना जीवन कृतार्थ माना। उसने कवि को हर प्रकार का आश्रय देकर उसकी साहित्य-साधना में महान योगदान दिया था।
पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास
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