________________
संघाधिष नेमिदास तीर्थेशगोत्र । चौहानवंशी नरेश राजा रुद्रप्रताप अथवा प्रतापरुद्र (वि.सं. 1468-1510 के मध्य) था जो कि चन्द्रवाड़पट्ठन (चन्द्रवार) कालिन्दी नदी के तौर पर बसी थी। यहीं पर श्रावक नेमिदास जो कि प्रसिद्ध जौहरी थे तथा जिन्होंने चन्द्रवाड़ में एक विशाल एवं भव्य जिनालय बनाकर उसमें विद्रूम रत्नों एवं पाषाण की कई सुन्दर मूर्तियों का निर्माण कराकर वहां प्रतिष्ठित कराई थीं। साहू नेमिदास पद्भावती पुरवाल जाति के थे। इन्हीं के आश्रम में रइधू ने 'पुण्णसवकहा' का प्रणयन किया था। आश्रयदाता साहू नेमिदास के पुत्र एवं भतीजे को पुत्र रत्न प्राप्त होने के उपलक्ष में साहित्य एवं साहित्यकारों का जैसा सार्वजनिक सम्मान किया गया, उससे चन्द्रवाड पट्ठन के समाज एवं राष्ट्र की साहित्य-रसिकता का पूर्ण परिचय मिलता
है।
___ साहू नेमिदास के पूर्वज योगिनीपुर छोड़कर कालिन्दी के तीर पर बसे हुए चन्द्रवाड नगर में आकर बस गए। यह वंश साहित्य एवं जिनवाणी सेवा को अपना महान धर्म एवं समाज सेवा को अपना पुनीत कर्तव्य समझता रहा है। साहू नेमिदास अपने समकालीन राजा रुद्रप्रताप चौहान द्वारा सम्मानित थे तथा व्यापक कार्यों में अग्रसर। उसने हीरा, मोती, विद्रप आदि की कई जिन प्रतिमाओं का निर्माण कराकर तथा उनकी प्रतिष्ठा कराकर 'तीर्थेशगोत्र' का बन्ध किया था। पुण्य कार्यों से अपनी ऐसी महिमा बनाई थी कि उसके सम्मुख पूर्णमासी के चन्द्रमा की ज्योति भी मलिन होती हुई प्रतीत होती थी। उसने अनेक जिन भवन बनवाए। बुधजनों के लिए वह चिन्तामणि रत्न थे। उसने अपने व्यवहार से शत्रुओं को भी मित्र बना लिया था।
साहू नेमिदास के पिता का नाम तोसउ था तथा वंस सोमवंश के नाम से प्रसिद्ध था। नेमिदास के दो पत्नियां मीखा एवं माणिकी थी। इनके छोटे
पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास
165