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सरल बना देते थे वहां अन्तस्थल का रहस्य भी पाठक को बखूबी समझा देते हैं। मूलग्रन्थ के अनुरूप आशय रखते हैं। ग्रन्थ के बाहर की स्वयं की व अन्य की कोई स्वतंत्र बात आपकी टीकाओं में नहीं है।
आपने आदिपुराण, उत्तरपुराण, शान्तिपुराण, चारित्रसार, आचारसार, ज्ञानामृत सार, प्रश्नोत्तर श्रावकाचार, जिनशतक (समन्तभद्रकृत) सुभौम चरित सुक्ति मुक्तावली, तत्वानुशान, बृहत्स्वयंभू स्त्रोत, चतुविंशति सन्धान, चतुविंशति तीर्थंकर स्त्रोत, सुधर्म श्रावकाचार, आदि अनेक ग्रन्थों की टीकायें लिखीं। आपने कुछ स्वतंत्र पुस्तकें भी लिखी जैसे बालबोध, जैन धर्म, क्रिया मंजरी । मुनियों व तीर्थ क्षेत्रों की पूजाएं भी लिखीं।
आप दिगम्बर जैन महासभा के मुख पत्र 'जैनगजट' के सम्पादक रहे। महासभा के सहायक मंत्री भी रहे। महासभा ने आपको 'धर्मरत्न' की उपाधि दी। शास्त्री परिषद के भी आप सभापति व संरक्षक रहे। दि. जैन सिद्धान्त संरक्षिणी सभा के दो अधिवेशनों में आपको सभापति बनाया गया था और 'सरस्वती दिवाकर' उपाधि दी। 4 जनवरी 1962 को 79 वर्ष आयु में आपका फिरोजाबाद नगर में स्वर्गवास हो गया।
विद्वद्-भूषण डा. लालबहादुर शास्त्री व्यक्तित्व की अनन्तता-बौद्धिक प्रतिभा, अप्रतिहत कवित्व, प्रभावी वक्तृत्व और शालीन व्यक्तित्व के धनी डा. लालबहादुर शास्त्री का आंखों में स्नेहिल और अपनापन, वाणी में माधुर्य और जिनके साहचर्य व अपरिमेय संतोष की झलक एक साथ देखने को मिली है। आपका स्थान जैन समाज के विशिष्ट विद्वानों में शीर्षस्थ है।
जीवन का प्रारम्भ और विकास-डा. शास्त्री का जन्म लालरू (पंजाब) में एक समृद्ध परिवार में हुआ। पिताश्री रामचरन लाल जी ईस्ट इंडिया रेलवे में एक उच्च पदाधिकारी थे। आपका परिवार मूलतः जिला आगरा, 127
पद्यावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास