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जनसाधारण की उपयोगी पुस्तकें भी लिखीं। जैसे-महावीर दर्शन, महावीर वाणी, मुक्ति मंदिर, सत्य और तथ्य, बेटी की विदा, घरवाला लिखी। ये सब पुस्तक हिन्दी कवितायें हैं। इसी प्रकार संस्कृत काव्य पर भी आपका असाधारण अधिकार रहा। आपने तत्कालीन राष्ट्रपति श्री जाकिर हुसैन को एक समारोह में एक संस्कृत कविता लिखकर दी।
सम्मानीय पदों के गौरवधारी-आप भा.दि. जैन शास्त्री परिषद के अध्यक्ष रहे। भा.दि. जैन महासभा व भा.व. शान्तिवीर कार्यकारिणी के सदस्य रहे। आप पद्मावती पुरवाल दि. जैन पंचायत, धर्मपुरा, दिल्ली के अध्यक्ष रहे। आप अपने विद्यापीठ के प्रवक्ता परिषद के अध्यक्ष भी रहे। व्यक्ति ही नहीं संस्था थे-आपका जीवन इतने कृतत्वों से संपूरित रहा कि आप व्यक्ति से संस्था बन गये। एक ओर आपकी निरभिमानिता परन्तु दूसरी ओर स्वाभिमानी गरिमा आप में परिलक्षित होती थी। शायद यही कारण है कि धनिक वर्ग से आपकी ज्यादा पटरी नहीं खाई। फिर भी आप किसी की अवज्ञा नहीं करते थे और न आशावश किसी का गुणगान । एक निस्पृह व्यक्ति की सम्पुटता से युक्त रहे। लोभ से कहीं झुकते नहीं देखा गया। आप भारत के विभिन्न प्रान्तों में विद्वतापूर्ण व्याख्यान मालाओं के लिए आमंत्रित किये जाते रहे। परन्तु उसमें आपका कोई आर्थिक लाभ या योग नहीं होता था। विशुद्ध जैनधर्म की सेवा और शुद्ध तय रूप प्रचार-प्रसार रहा।
आपको अभिनन्दन ग्रन्थ का समर्पण सन् 1986 में सुजानगढ़ में पंचकल्याणक प्रतिष्ठा महोत्सव पर आयोजित शास्त्री परिषद के अधिवेशन में विशाल जनसमूह के मध्य किया गया।
सोनागिर सिद्धक्षेत्र पर पर्वतराज के मुख्य मंदिर नं. 57 चन्द्रप्रभु जिनालय की वेदी के दायी तरफ परिक्रमा पथ में श्री नमिनाथ की वेदी के ऊपरी भाग में चारों ओर दश धर्म पर रचनाएं लिखी हुई हैं। पद्यावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास
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