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स्व. कवि भगवतजी (एत्मादपुर) कवि भगवत जी का जन्म एत्मादपुर में हुआ था। आपने बड़ी अल्प वय पाई थी। परन्तु उतने ही अल्पसमय में आपने जैन साहित्याकाश को अपनी सुललित रचनाओं से आच्छादित कर दिया। आप बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। कहानी, उपन्यास, कविता एवं नाटक साहित्य प्रकाशित हो चुका है। आपकी दो रचनाएं ऋषभ स्तुति एवं महावीर स्तुति श्री सोनागिर सिद्ध क्षेत्र पर पर्वतराज के मुख्य मंदिर नं. 57 चन्द्रप्रभु जिनालय की वेदी के दायें तरफ परिक्रमा में श्री नेमिनाथ की वेदी के पीछे लिखी हैं।
__ लोकमंच नायक
स्व. श्री भागचन्द जैन जीवन की शतकीय पारी को मात्र 6 वर्ष से चूक जाने वाले ला. भागचन्द जी नृत्य, संगीत, कला, साहित्य और रंगमंच के अनन्य प्रेमी थे। स्थानीय एस.आर.के. कालिज और द्वारिकाधीश मंदिर के निर्माता सेठ कन्हैयालाल गोइन्का भी समान अभिरुचियों के व्यक्ति थे। नाट्य-संगीत के कार्यक्रमों में मिलते जुलते दोनों में निकट का संपर्क हो गया। शनैः-शनैः ला. भागचंद सेठजी की अंतरंग मित्र-मण्डली के अभिन्न अंग बन गये। सेठजी की अगआई में संध्या को नित्यप्रति ही संगीत-गायन की गोष्ठी जमती जिसमें उन्हीं जैसी समान रुचि और विचारों के लोग-पं. परसराम, पं. वैद्यमित्र, श्री जुगल किशोर, श्री रघुवर दयाल कानूनगो, लाला भागचंद जैन और मास्टर किशनलाल आदि भजन, संगीत गायन की सरिता मे गोते लगाया करते थे।
उन दिनों नगर में दो नाटक-मण्डली सक्रिय थीं। एक 'आनन्द नाट्य-समिति' जिसकी स्थापना श्री रघुवरदयाल गुबरेले, पं. श्यामलाल
और लाला गुरुदयाल जैसे राष्ट्रीय विचारधारा वाले लोगों ने की थी। पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास
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