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जागीर, सुजानगढ़, कुचामन, आंका (टोंक स्टेट) में प्रधानाध्यापक के रूप में कार्य किया। इसके बाद स्वतंत्र व्यवसाय किया। जैन विद्यालय गिरडीह जिला हजारीबाग में धर्म एवं संस्कृत के अध्यापक रहे।
आरम्भ से आपकी रुचि प्रतिष्ठा कराने, संस्कारादि और विधानादि कराने की रही। इस क्षेत्र में काफी लोकप्रियता प्राप्त की । साहित्य के प्रति आपका लगाव कम नहीं रहा। प्रश्नोत्तर शतक (प्रथम भाग ) एवं सरस सवैया आपकी स्वतंत्र प्रकाशित रचनायें हैं। इसके अलावा जैन क्रिया-काण्ड प्रदीप, दृष्टान्त लहरी, जैन विवाह - विधि और प्रश्नोत्तर शतक (द्वितीय भाग) तथा लावनी संग्रह आपकी अप्रकाशित कृतियां हैं। जैन पद्धति से विवाह कराना आपने राजस्थान में कई स्थानों पर सर्वप्रथम प्रारम्भ किया । इस प्रकार जीवन के विविध क्षेत्रों में आपने कार्य किया ।
29 दिसम्बर 1983 को फिरोजाबाद में पंडितजी ने समाधिपूर्वक अपने नश्वर शरीर का त्याग किया।
पंडित राजकुमारजी शास्त्री, निबाई
आयुर्वेदाचार्य पं. राजकुमार जी शास्त्री का जन्म ग्राम सकरौली (एटा) उत्तरप्रदेश में हुआ। आपके पिता श्री लाला रेवती प्रसाद जी और माता श्रीमती सरस्वती देवी थीं। आप अपने माता-पिता के तीसरे पुत्र हैं। आप प्रारम्भ से विनयशील, सरल स्वभावी, मेधावी थे। आपकी शिक्षा बनारस, आरा, उज्जैन में हुई । आपने शास्त्री, साहित्यतीर्थ और आयुर्वेदाचार्य परीक्षायें उत्तीर्ण कीं ।
साहित्य और समाज सेवा- आपने कुछ नाटक और पुस्तकें लिखी हैं। आप सफल लेखक और प्रभावक वक्ता हैं। आप महासभा परीक्षालय के वर्षों परीक्षक रहे । 'अहिंसा जैन बुलेटिन' एवं 'अहिंसा वाणी' मासिकी के सम्पादक रहे। अखिल विश्व जैन मिशन के कार्य को बढ़ाने के लिए पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास
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