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पंडित जी जहाँ देवदर्शन से गुणों का विकास मानते थे, वहीं रात्रि भोजन से प्रच्छन्न त्रस जीव भक्षण दोष मानते थे। भावों की शुद्धि के लिए द्रव्य शुद्धि भी आवश्यक मानते थे। पंडित जी की मनोकामना थी कि समाज में धार्मिक वातावरण, सदाचार पालन, धार्मिक वात्सल्य बना रहे। सभी अपनी आत्मा का हित कर सकें। पंडित जी अध्ययनवृद्ध, अनुभववृद्ध और ज्ञानवृद्ध थे।
बीसवीं शती की उच्च विद्वत्परम्परा में ज्येष्ठ, अनेक विद्वानों के निर्माता, निर्भीक वक्ता, आर्ष मार्ग के सम्वाहक, अनेक ग्रन्थों के प्रणेता, अनुवादक, सम्पादक, सुकवि, व्रती पंडित मक्खनलाल जी शास्त्री न्यायालंकार को उन्हीं की पुण्य स्मृतियों से संजोया-संवारा गया स्मृति ग्रन्थ सन् 1993 में तैयार हुआ। प्रकाशक भारतवर्षीय दि. जैन महासभा।
आप सन् 1979 में चिरनिद्रा में लीन हो गये।
पं. मथुरादासजी शास्त्री समाज के मान्य विद्वानों में पंडित मथुरादास जी का नाम आदर के साथ लिया जाता है। जैन साहित्य के गहन अध्येता तथा एम.ए. साहित्याचार्य आदि लौकिक उपाधियों के अधिकारी विद्वान पंडित जी हैं।
आपका जन्म एटा उत्तर प्रदेश में हुआ। आप दिल्ली विद्वत समिति के मंत्री हैं। आपका कार्य क्षेत्र गुजरानवाला गुरुकुल एवं महावीर जैन हायर सैकिन्ड्री स्कूल, नई सड़क दिल्ली रहा। आपने निष्ठा, लगन एवं अपनी कुशल प्रशासन क्षमता के कारण समन्तभद्र विद्यालय को उन्नति के शिखर पर जाने का महान कार्य किया। इस विद्यालय के आचार्य पद पर आपने विद्यालय के साथ समाज सेवा और धर्म प्रभावना के महान कार्य किये।
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पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास