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और समाज की सेवा कर रहे हैं। आचार्यश्री का गृहस्थावस्था का नाम महेन्द्रकुमार था। आपके पिता धार्मिक प्रवृत्ति के थे। अतिथि सत्कार में तत्पर रहते थे। वे कुशल व्यापारी थे।
आचार्य श्री अपने माता-पिता के तीसरे पुत्र थे। आपके चार भाई1. कन्हैया लाल, 2. धर्मेन्द्रनाथ, 3. संतकुमार और 4. राजकुमार चिकित्सक हैं।
शिक्षा-आपकी प्रारम्भिक शिक्षा फिरोजाबाद में हुई। दस वर्ष की अवस्था में स्नेहमयी माताजी का देहान्त हो गया। इससे आपके मन में विरक्तता का भाव उत्पन्न हो गया और आत्मकल्याण के लिए शास्त्रों का विशेष ज्ञान करने हेतु आपने दिगम्बर जैन महाविद्यालय ब्यावर और सरसेठ हुकमचन्द महाविद्यालय इन्दौर में शास्त्री कक्षा तक ज्ञान प्राप्त किया। आपकी बुद्धि अत्यन्त तीक्ष्ण और प्रतिभा अपूर्व थी। न्यायतीर्थ, आयुर्वेदाचार्य आदि की परीक्षाएं देकर उनमें उत्तीर्ण हुए। संस्कृत, व्याकरण, साहित्य, न्याय सिद्धान्त आदि अनेक विषयों का गहन अध्ययन कर अच्छी योग्यता प्राप्त की और साथ-साथ अनेक विद्याओं का अच्छा ज्ञान भी प्राप्त किया। धर्मशिक्षा के संस्कारों ने आपकी उदासीनता को विरक्तता में परिवर्तित कर दिया। परिणामस्वरूप उभरते यौवन में ही आजन्म अखण्ड ब्रह्मचर्य व्रत ग्रहण कर लिया।
व्रत निष्ठा-बीस वर्ष की अवस्था में ही आपने परम पूज्य महान तपस्वी, परम निर्भीक, प्रखर प्रभावी प्रवक्ता श्री 108 आचार्य कल्प चन्द्रसागर महाराज के साथ सप्तम प्रतिमा ब्रह्मचर्य रूप से रहकर आपने परम पूज्य आचार्य श्री 108 वीरसागर जी महाराज से वि.सं. 1994 में टांकाढूंका (मेवाड़) में क्षुल्लक दीक्षा ली। बत्तीस वर्ष की अवस्था में पूज्य 108 आचार्य श्री आदिसागर जी महाराज से मुनि दीक्षा ली। आपका दीक्षान्त नाम महावीरकीर्ति रखा गया। आप वास्तव में महावीर ही थे। इस पद्यावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास