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शिक्षा प्राप्त की। इस होनहार बालक की भव्य आत्मा वैराग्य की ओर थी। अतः 15 दिसम्बर 1994 वात्सल्य रत्नाकर आचार्य श्री विमलसागर जी महाराज से सम्मेद शिखर पर्वत पर मुनि दीक्षा ग्रहण की। आचार्य श्री की समाधि के कुछ समय बाद दिल्ली आने के मार्ग में बसे गांवों, कस्बों, शहरों में धर्म प्रभावना करते हुए उनका दिल्ली आगमन हुआ। यहां आकर पूज्य आचार्य श्री विद्यानंद जी महाराज के सानिध्य में रहकर कुन्द-कुन्द भारती में आगम का ज्ञान प्राप्त किया। उसके पश्चात् धर्म प्रभावना करते हुए जयपुर (राजस्थान) पहुंचे। राजस्थान में कई पंचकल्याणकों एवं अन्य विशाल आयोजनों को अपना सान्निध्य प्रदान किया। वर्तमान में आप जयपुर में विराजमान हैं।
मुनिश्री अनन्तसागरजी आप पद्मावतीपुरवाल जाति के श्री हीरालालजी एवं माताश्री मेनकाबाई के पुत्र हैं। गृहस्थावस्था का नाम नेमचन्द्र जी है। आपका जन्म वि.सं. 1967 में पुनहरा (एटा) में हुआ। आपने शादी नहीं की, बालब्रह्मचारी रहे। क्षुल्लक दीक्षा, सं. 2016 कोल्हापुर में विजयसागर नाम से, ऐलक दीक्षा माह कार्तिक सुदी पंचमी संवत् 2026 दिल्ली में, एवं मुनिदीक्षा माह फाल्गुन सं. 2027 को श्री सम्मेदशिखर पर श्री अनंतसागर जी नाम से पूज्य आचार्य श्री विमलसागर जी महाराज से ली। ध्यान, अध्ययन में सदा लीन रहने वाले साधु हैं।
आर्यिका 105 श्री विशिष्टमती माताजी जन्म स्थान शिकोहाबाद (उ.प्र.) पूर्व नाम मीनाक्षी जैन पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास
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