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18 वर्ष की अवस्था से आपने लिखना प्रारम्भ किया। आपकी लेखनी का विषय प्रमुख रूप से आयुर्वेद रहा। वैसे हिन्दी गद्य साहित्य को भी आपने अपनाया। अब तक करीब 20 पत्र पत्रिकाओं में आपके लेख प्रकाशित हो चुके हैं।
प्रकाशित पुस्तकें-1. तत्काल फलप्रद प्रयोग (प्रथम भाग 151 योग, 2. महिला रोग चिकित्सा (पूर्वाध) 301 प्रयोग, 3. महिला रोग चिकित्सा (उत्तराध), 4. तत्काल फल पद (चौथा भाग) 388 स्वादिष्ट प्रयोग, 5. पुरुष रोग चिकित्सा, 6. सौ रोगों का सरल इलाज, 7. प्राकृत चिकित्सा, 8. धर्मार्थ औषधालयों के प्रयोग (प्रथम भाग), 9. धर्मार्थ औषधालयों के चिकित्सा अनुभव, 10. पथ्य दर्शक, 11. चिकित्सा चन्द्रशेखर (प्रथम भाग), 12. उपदंश-सुजाक चिकित्सा 13. तिलिस्मी औषध भंडार, 14. नवीन चिकित्सानुभव, 15. कुमारी विज्ञान, 16. सूरज रोग विज्ञान, 17. आठ औषधों से औषधालय चलाना, 18. अनुभव भण्डार, 19. तीन खजाने, 20. कुकरकास विज्ञान, 21. अनुभव हजारा, 22. पाक भंडार (प्रथम द्वितीय भाग), 23. नारू रोग विज्ञान, 24. फार्मेसी भवन कार्यालयों के गुप्त योग, 25. धर्मार्थ औषधालयों के प्रयोग (दूसरा भाग) 26. झांसी विश्वविद्यालय के प्रयोग।
आप आयुर्वेद के महान पंडित एवं धर्म के सन्मान्य विद्वान थे। आपने समाज की अत्यधिक सेवा की।
श्री जगरूपसहाय जी जगरूपसहाय का जन्म उम्मरगढ़ (एटा) उत्तरप्रदेश में हुआ। आपके पिता श्री बहोरीलालजी और माताश्री मुन्नी देवी थीं। आपके पिता की स्थिति साधारण थी पर बाबाजी की प्रतिष्ठा समाज में थी। आपकी आरम्भिक शिक्षा जम्बू विद्यालय सहारनपुर में हुई। अनन्तर माधव
पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास
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