________________
ओर से मीठी होती है, इसी प्रकार आपकी प्रतिभा भी चाहे प्रवचन हो, चाहे लेखन हो, चाहे प्रतिष्ठा विधि हो और चाहे अन्य समाजिक विषय हो, चहुं ओर से आश्चर्यजनक रूप से चमत्कारिणी थी। आपने उस समय संस्कृत भाषा का विपुल ज्ञान अर्जन किया था, जब काशी के संस्कृत विद्वान वेद निन्दक कहकर जैनियों के साथ अछूत जैसा व्यवहार करते थे। उनके पाद स्पर्श से जमीन को अपवित्र मानकर गंगाजल से शुद्ध करते थे। इनके विद्या अर्जन करने की घटना अकलंक देव के इतिहास को दुहराती है। आपने अनेक शास्त्रार्थों में जैन शासन की विजय पताका फहराई। आपका कार्य क्षेत्र प्रायः सहारनपुर स्व. लाला जम्बूप्रसाद जी के यहां रहा, परन्त प्रतिभा का धनी, यह सरस्वती पुत्र वेतन भोगी मृत्यु की तरह नहीं जिया। गुरुपद पर ही अलंकृत रहे और रईस लाला जी इनके साथ शिष्य की तरह ही व्यवहार किया करते थे। पांडित्य का माथा उन्होंने सदैव उन्नत रखा। उस युग के ये विख्यात प्रतिष्ठाचार्य थे, कारण संस्कृत भाषा पर इनका असाधरण अधिकार था एवं वाणी में मिश्री घुली थी। आपने तत्वार्थ राजवार्तिक की हिन्दी टीका भी लिखी थी। आज पंडित जी का यश पी.डी. जैन इण्टर कालेज है।
श्री पुष्पेन्द्रकुमार कौन्देय पिछली तीन पीढ़ियों से समाज सेवा में समर्पित रहने वाले परिवार में श्री पुष्पेन्द्रकुमार कौन्देय का जन्म 9 मई 1941 को हुआ। आपके पिता श्री केशवदेव जी का 78 वर्ष की आयु में हुआ। आपकी माताजी का नाम स्व. सुखदेवी जी है। सन् 1963 में आपका विवाह श्रीमती कुसमलता जी (एटा) के साथ हुआ। जिनसे आपके तीन पुत्र एवं एक पुत्री प्राप्त हुई।
आपकी सामाजिक सेवाएं उल्लेखनीय हैं। हैदराबाद जैन समाज के सन् 1988 से मंत्री पद पर कार्य कर रहे हैं। इसके पूर्व समाज के उपाध्यक्ष भी रह चुके हैं। हैदराबाद सम्पूर्ण जैन समाज के भी आप मंत्री हैं। श्री दि. पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास
106