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जी जैन जैसे मेधावी साथी मिले।आपने माणिकचन्द्र दि. जैन परीक्षालय बम्बई से जहां शास्त्री परीक्षा पास की वहां राजकीय परीक्षा न्याय मध्यमा भी उत्तीर्ण की। न्यायतीर्थ परीक्षा की तैयारी लो की पर देशव्यापी असहयोग आन्दोलन के कारण परीक्षा नहीं दी। सन् 1944 में पंजाब विश्वविद्यालय से प्रभाकर परीक्षा पास की और प्रवेशिका (मैट्रिक) परीक्षा भी उत्तीर्ण की।
सन् 1920 से आप कार्य क्षेत्र में आगे बढ़े। सर्वप्रथम भा. दिगम्बर जैन सिद्धान्त प्रकाशिनी संस्था कलकत्ता में छह माह कार्य किया। फिर दि. जैन सेतवाल महासभा बम्बई के ढाई वर्ष तक व्यवस्थापक रहे। साथ ही जैनकुमार सभा, बम्बई की प्रमुख-पत्रिका जैन प्रभादर्श मासिकी का सम्पादन किया। दि.जैन खण्डेलवाल महासभा के पाक्षिक पत्र खण्डेलवाल जैन हितेच्छु के सम्पादन में भी बिना नाम के सहयोग दिया।
सन् 1923 में अक्षय तृतीया को आपका विवाह हुआ। आपके चार पुत्र हुए जिनमें अरुण कुमार ही जीवित रहा और चार पुत्रियां हुई। आप 1924 में मुल्तान में आकर बसे और अध्यापक बन गये। सन् 1925 में दुकानदार बने और 1934 में अकलंक प्रेस की नींव डाली। जब 16 जुलाई 1947 को देश के विभाजन की योजना बनी तब आपको भी मुल्तान छोड़कर सहारनपुर आना पड़ा। वहां लाला हुलासराय जी ने आपको और मुद्रालय को समुचित स्थान दिया। 10 माह सहारनपुर रहे। चूंकि यहां प्रेस का व्यवसाय बखूबी नहीं चला, इसलिए सन् 1948 में दिल्ली आ गये। अभय प्रेस सदर बाजार में खोला और अहाता केदार में आवास बनाया। जब एक दयामयी भूल से सन् 1950 में प्रेस से स्वत्व जाता रहा तब आप चार वर्ष तक जैन गजट के वैतनिक सम्पादक रहे। सन् 1956 में आपने पुनः प्रेस खोला। सन् 1966 में आप महावीर जी आ गये। यहां के शांत वातावरण में ही आपने अंतिम सांस ली। 20 मई को आपका स्वर्गवास हो गया।
पद्यावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास
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