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पांडे कंचनलालजी "हंसी खेल में स्वांग धरो अरु जिन मत की दीक्षा धारी' वाली लोकोक्ति के कारण भूत ऐतिहासिक मुनिराज ब्रह्मगुलाल की पीछी परम्परा में पांडेय कंचनलाल जी का जन्म हुआ। पंच मंगल के रचयिता पाण्डेय रूपचंद जी आपके कुटुम्ब के ही दिवाकर हैं। उसी परम्परा में पाण्डेय कंचनलाल जी थे जिनको विपत्तियों के बादल प्रारम्भ से ही घेरे रहे। बचपन से ही पिता के स्नेह से वंचित रहे, बड़े भाई श्री लालारामजी तथा माताजी कंठश्री के सौहार्द से आप प्रारम्भिक शिक्षा के बाद मथुरा-चौरासी पर सन् 1922-23 में पढ़े। उसके बाद 24-25 में बनारस स्याद्वाद विद्यालय में अध्ययन किया। घर की स्थिति अच्छी न होने से अधूरी शिक्षा छोड़कर वापस आ गये।
एटा में दुकान की तथा बाबू जगरूप सहाय वकील द्वारा माला टीका सर्वार्थ सिद्धि (आचार्य पूज्यपाद कृत) स्थान-स्थान पर विक्रय की तथा बाद में सन् 1930 में पं. पन्नालाल जैन की स्मृति में जारखी में एक विद्यालय की स्थापना हुई उसमें आनरेरी प्रचार मंत्री रहे। उसके बाद विद्यालय फिरोजाबाद चला गया जो आज पी.डी. जैन इण्टर कालिज के नाम से चल रहा है। आपके पूर्वज पांडे हीरालाल जी अपने मूल निवास फिरोजाबाद में ही रहते थे। अतः जारखी के बजाय विद्यालय के वहीं संचालन मे आपकी विशेष प्रेरणा रही।
आपने अपने कुल परम्परागत पंडिताई, विवाह पढ़ना आदि कार्य को बड़ी निपुणता से निभाया। धार्मिक ग्रन्थों का स्वाध्याय निरन्तर करना आपकी विशेषता रही। आपकी विवाह पठन पद्धति अपनी निराली ही विशेषता रखती थी। आपके आचार्यत्व में सम्पन्न होने वाला विवाह संस्कार केवल एक संस्कार समारोह ही नहीं होता था अपितु स्वजातीय नियम एवं शास्त्रों के उदाहरणों द्वारा संस्कारों के समझने का बहुमूल्य अवसर होता था।
पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास