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गुर-गम्भीर पद का निर्वाह ऐसी कुशलता से किया कि आजीवन उसी के होकर रह गये। बोर्डिंग में रहने वाला प्रत्येक छात्र आपका पितृतुल्य स्नेह पाकर श्रद्धावनत रहता था। शिक्षा पूर्ण कर जो भी छात्र बोर्डिंग से विदा होता पूज्य पंडितजी के प्रति आजीवन श्रद्धावान रहता। एक बार बोर्डिंग के पूर्व स्नातकों ने आपके प्रति अपनी हार्दिक श्रद्धा और कृतज्ञता व्यक्त करने हेतु सार्वजनिक अभिनन्दन किया और सम्मानपत्र अर्पित किया।
श्री दि. जैन मालवा प्रान्तीय सभा के सरस्वती भण्डार और परीक्षालय के मंत्रित्व के पदभार को सफलतापूर्वक संचालित कर उसकी प्रबंध कारिणी सदस्यता द्वारा उसके सम्यक् संचालन में सराहनीय योग दिया।
मध्यभारत हिन्दी साहित्य समिति के सदस्य, भारतीय दि. जैन पद्यावती परिषद के मंत्री एवं 'पद्मावती पुरवाल' पत्र के संपादक मण्डल में रहे। श्री पन्नाला दि. जैन विद्यालय फिरोजाबाद की प्रबन्ध समिति के भी सदस्य रहे। श्री भारतवर्षीय दि. जैन महासभा के सभा-विभाग के मंत्री पद का भार भी आपके ही सबल बाहुओं पर डाला गया।
पंडितजी शांत स्वभाव, उदार प्रकृति, ममतामयी सुमधुर वाणी से सहज ही अपनी ओर आकर्षित कर लेते थे। वे समाज का शुभचिंतन करने वाले दूरदर्शी और अनुभवी विद्वान थे। सामाजिक उन्नति और युवा पीढ़ी के निर्माण में आपका अपूर्व योगदान रहा। आप का शिष्यवर्ग आज भी आपका श्रद्धापूर्ण स्मरण करता है।
पांडे उग्रसेनजी शास्त्री श्री उग्रसेन जी का जन्म आगरा जिले के नगला स्वरूप नामक एक छोटे से ग्राम में हुआ। आपके पिताश्री सुखनन्दनलाल जी कृषि कर्मी व्यक्ति थे। आपकी मां का नाम श्रीमती रामप्यारी देवी था। 13 माह की । अवस्था में आपको मां के असीम प्यार से वंचित होना पड़ा। 4 वर्ष की . पद्यावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास