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में अध्ययन कर विशारद तृतीय खण्ड तथा शिक्षा पायी। फिरोजाबाद आकर मुनीमी और स्वतन्त्र व्यवसाय किया। नई बस्ती फिरोजाबाद में रहते हुए आचार्य विमलसागर दि. जैन विद्यालय तथा औषधालय की स्थापना और निर्माण कार्य में योग दिया। 1986 में आचार्य श्री 108 बिमलसागर जी महाराज ससंघ फिरोजाबाद में चातुर्मास हेतु पधारे तो आपने और ब्र. महीपाल जी श्रावण शुक्ला 15 रक्षाबंधन के दिन क्षुल्लक दीक्षा ग्रहण की। दीक्षा के समय आपका नाम विष्णुसागर और महीपाल जी का नाम अकम्पनसागर रखा गया। सोनागिरिजी पंचकल्याणक के अवसर पर पौष कृष्ण 5 को आचार्यश्री विमलसागर जी महाराज से मुनि दीक्षा ली और उन्हीं के संघ में रहे। दुर्बल और अशक्त हो जाने के कारण आजकल मुनिश्री जितेन्द्रसागर जी के साथ श्री 1008 चन्द्रप्रभ दि. जैन अतिशय क्षेत्र फिरोजाबाद में विराजमान हैं। आपने 'पद्मावती पुरवाल जाति : रत्नों की खान' शीर्षक पुस्तक लिखी है।
मुनिश्री जितेन्द्रसागरजी आपका जन्म ग्राम छिकाऊ, जनपद फिरोजाबाद में हुआ था। पिताश्री का नाम श्री अन्तराम और माताजी का नाम श्रीमती जानकीबाई था। आप 4 भाई थे। दो स्वर्गवासी हो चुके हैं। 6 पुत्र और तीन पुत्रियां हैं। गांव में स्वतंत्र व्यवसाय करते थे। 15 वर्ष निर्विरोध ग्राम प्रधान रहे। कुछ समय से फिरोजाबाद स्थायी निवास बना लिया था। मुनिश्री शांतिसागर जी से सप्तम प्रतिमा के व्रत जारखी ग्राम में लिए। आचार्य श्री विमलसागर जी के फिरोजाबाद वर्षावास (1986) के अवसर पर आश्विन शुक्ला दशमी को क्षुल्लक दीक्षा ली। मुनि दीक्षा आचार्य श्री विमलसागर जी से ही श्री सम्मेद शिखर जी में 1994 में विजयादशमी के दिन ग्रहण की। वर्तमान मे आप श्री चन्द्रप्रभ दि. जैन अतिशय क्षेत्र फिरोजाबाद में मुनि श्री विष्णुसागर जी के साथ विराज रहे हैं। पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास