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श्री वीरसागर जी एवं मुनि श्री चन्द्रसागर जी की समाधि साधना आपने प्रमुख भूमिका निबाही। अस्वस्थतावश धुवड़ी (आसाम) में आप अपने सुपुत्र श्री रतनचन्द्र के पास आ गए और वहीं आषाढ़ कृष्णा 2 सन् 1961 को आपका देहावसान हो गया।
ब्रह्मचारी पाडे श्रीनिवासजी ब्रह्मचारी पांडे श्रीनिवास जी जैन का जन्म चैत्र बदी नवमी विक्रम सं. 1959 में फिरोजाबाद (उ.प्र.) में हुआ था। आपके पिता श्री बैनीराम पाण्डे थे और माता जामवती देवी थीं। आपने पद्मावती पुरवाल जाति को भूषित किया है। आपकी लौकिक शिक्षा जितनी कम हुई, धार्मिक शिक्षा उतनी ही अधिक हुई। आपने उत्कृष्ण क्षयोपशम एवं निरंतर स्वाध्याय से चारों अनुयोगों का गहन अध्ययन किया। ___ आपका विवाह श्रीमती केतुकी देवी के साथ हुआ था। आपके परिवार में दो भाई, एक बहन और चार पुत्र हैं। आपके भाई चोखेलाल जी भी अच्छे धर्मविद थे। अपनी आजीविका हेतु आपने कपड़े का व्यापार किया। जनरल स्टोर खोला, चूड़ी व सर्राफे का कार्य किया तथा किराना का भी व्यापार किया। इससे आपकी स्थिति उत्तरोत्तर सुदृढ़ होती गई।
आप अतीव स्वाध्याय प्रेमी, मिलनसार एवं गुणानुरागी रहे। आपने पंडित धूरीलाल जी से धार्मिक ग्रन्थों का अध्ययन किया। आपने पंडित पन्नालाल जी, सन्तलालजी, माणिकचन्द जी न्यायाचार्य आदि विद्वानों के अनुभव से लाभ लिया। ज्ञान के साथ चारित्र की दिशा में आप आगे बढ़े। सन् 1957 में आपने पूज्य श्री गणेशप्रसाद जी वर्णी जी से सातवीं प्रतिमा के व्रत ग्रहण किये। आपने प्रतिदिन देवपूजा, शास्त्र स्वाध्याय, सामायिक जैसे कार्यों में दत्तचित्त होकर मध्यम विरक्त जैसा गृहस्थ जीवन व्यतीत किया। अपने प्रभाव से अनेक लोगों को धर्म की दिशा में बोध दिया।
पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास
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