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आचार्य श्री निर्भयसागरजी महाराज टूण्डला निवासी श्री दरबारी लाल जी की धर्मपत्नी श्रीमती पुष्पादेवी ने 1-1-41 को एक बालक को जन्म दिया। 10वीं कक्षा पास करने के बाद उसने कपड़े की दुकान की। भारतीय संस्कृति और राजनीति से उनका लगाव था इसलिए राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ से उनका निकट का संपर्क रहा। 1992 में घटी घटना के कारण मन को शान्ति नहीं मिली। चिंतन
और मनन से मन वैराग्य की ओर बढ़ता चला गया और 28 अप्रैल 1999 को गिरनार पर्वत पर आचार्य श्री निर्मलसागर जी महाराज से मुनि दीक्षा ग्रहण की।
28-2-2001 को मुनिश्री सरगन (गुजरात) के उमता तालुका आये। ध्यान अवस्था में उन्हें बोध हुआ कि यहां जो टीला है, उसके नीचे मंदिर
और पुरातत्व की महत्वपूर्ण सामग्री है। उन्होंने खुदाई के लिए आग्रह किया। गुजरात राज्य के तत्कालीन राज्यपाल श्री सुन्दर सिंह भंडारी जी की अनुमति से 6 अप्रैल को खुदाई प्रारम्भ की गई और 5 जून 2001 को वहां 74 मूर्तियां जो 1100 से लेकर 23 वर्ष तक पुरानी थीं, निकली। श्री राम के कलात्मक मंदिर व पुराने दागिने प्राप्त हुए। 5 जुलाई 2002 को पू. मुनिश्री ने वहां मंदिर जी की स्थापना कराई। 24 अक्टूबर 2002 को तपस्वी आचार्य सन्मति सागर जी ने उन्हें आचार्य पद प्रदान किया। आचार्य श्री का ध्यान आत्मकल्याण व जनकल्याण की ओर है। उनकी पुस्तकें भी प्रकाशित हुई हैं।
मुनि श्री उर्जयन्तसागरजी महाराज एटा के प्रसिद्ध बर्तन व्यापारी लाला बंगाली के पुत्र श्री शिखरचंद की धर्मपत्नी श्रीमती इन्द्राणी जैन ने मोक्षसप्तमी 21-8-1977 को एक बालक को जन्म दिया। उसका नाम रखा राहुल जैन और उसने 10वी कक्षा तक
पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास
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