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त्यामवृत्ति-शुभकर्म के उदय से परमपूज्य श्री 108 आचार्यश्री महावीर कीर्तिजी का आगमन हुआ। उससमय आपकी उम्र 12 वर्ष की थी। महाराज श्री भी आपके ही घराने में से थे। आपने उनके समक्ष जमीकन्द का त्याग किया ओर थोड़े समय उनके साथ रहे। फिर भाई के आग्रह से घर आना पड़ा। अब आपको घर कैद सा जान पड़ा तो आपके भाई ने शादी के प्रयत्न किये लेकिन सब निष्फल रहे। आप आचार्य श्री 108 शिवसागर जी के संघ में थोड़े दिन रहे। वहां से बड़वानी यात्रा को कुछ लोगों के साथ चल दिये। बड़वानी में आचार्य श्री 108 विमलसागर जी का संघ विराजमान था। आपने वहां पर दूसरी प्रतिमा के व्रत लिये। इस समय आपकी उम्र 15 वर्ष की थी। फिर बाद में आप दिल्ली पहुंचे, वहां पर परमपूज्य आचार्य श्री 108 सीमंधरजी का संघ विराजमान था। उनके साथ आप गिरनारजी गये।
श्रमणत्व की ओर बढ़ते कदम-बैसाख शुक्ला 14 सन् 1965 को आपने आचार्यश्री सीमंधर जी से गिरनार क्षेत्र की चौथी टोंक पर क्षुल्लक दीक्षा ग्रहण की। उस समय आपकी उम्र 17 वर्ष की थी। वहां से विहार कर संघ का चातुर्मास अहमदाबाद में हुआ। उसके बाद अपने गुरु की आज्ञा से सम्मेदशिखर जी के लिए विहार किया। आप पैदल यात्रा करते हुए आगरा आये।
मुनि दीक्षा-आगरा में परम पूज्य आचार्य श्री 108 विमलसागर जी का संघ विराजमान था। आपने सं. 2024 आषाढ़ शुक्ला पंचमी रविवार के दिन महाव्रत को धारणकर आचार्यश्री विमलसागरजी से मुनि दीक्षा धारण की और मुनि श्री निर्मलसागर नाम से संबोधित हुए। संघ का चातुर्मास आगरा में ही हुआ। आपके मन में यात्रा की भावना बलवती थी। अतः महाराज श्री से आज्ञा लेकर व क्षुल्लक जी का साथ लेकर यात्रा के लिए विहार किया। रास्ते में आपका चातुर्मास सागर में हुआ। वहां से विहार
पद्यावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास
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