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मेहसाना पहुंचे। मेहसाना में समाधि से तीन दिन पूर्व 3 जनवरी 1972 को आचार्यश्री ने सभी संघस्थ त्यागी और व्रतियों को बुलाया। सबको बिठाकर बड़ी गंभीरता से संबोधित किया। सम्भव है आचार्य श्री को अपने तीन दिन के पश्चात् स्वर्गारोहण की झलक मिल गई हो। उन्होंने कहा-“आज से श्री 108 मुनि सन्मतिसागर जी महाराज संघ के आचार्य होंगे। एवं श्री 105 आर्यिका विजयमति जी को मुख्य गणिनी हम अपने आदेश से नियुक्त करते हैं। हमारे बाद यही व्यवस्था होगी।"
26 जनवरी 1972 का वह दिन आया जब रात्रि सवा नौ बजे आचार्य श्री की आत्मा सर्वथा शरीर छोड़कर चली गई। समाधि सम्राट, योगीन्द्रतिलक, उग्र तपस्या का धनी इस असार संसार से दूर चला गया। 27 जनवरी 1972 के मध्यान्ह 12 बजे मेहसाना की भूमि आचार्यश्री के दाह संस्कार से पावन हो गई। शरीर भस्म हो गया, रह गई उनकी याद, गुणों का स्मरण और उनकी निर्भीक देशना।।
आचार्य महावीरकीर्ति दि. जैन धर्म प्रचारिणी संस्था अवागढ़ (एटा) उत्तर प्रदेश ने आचार्य श्री महावीर कीर्ति स्मृति ग्रन्थ प्रकाशन कराया है। प्रकाशन तिथि महावीर जयन्ती सन् 1978 है।
वात्सल्य रत्नाकर आचार्य श्री विमलसागर जी महाराज श्रमण संस्कृति में साधु का विशिष्ट स्थान है जो संसारसागर में डूबते जीवों को उसी प्रकार सहारे होते हैं जैसे भटके हुए निशा-यात्री के लिए आकाश द्वीप। आचार्य विमलसागर जी महाराज उन दुर्लभ महापुरुषों में थे जिन्हें वीर प्रसूता भारत जननी युगों बाद जन्म देती है।
साधु जो प्रकृति वेषधारी है, पंचेन्द्रिय विषयों के विजेता हैं, आरम्भ-परिग्रह रहित हैं, साधु परम्परा के साधक हैं, ऐसे साधु के विषय में पंडित प्रवर
पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास
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