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की 108 चन्द्रसागर जी महाराज के दर्शनार्थ गये तो वहां शूद्र जल त्याग का व्रत लिया और वहीं चार माह अध्ययन कार्य किया। फिर साधु सेवा तथा तीर्थ यात्रा में निरत रहे। इसी बीच आपके पिताजी का देहावसान हो गया।
कई संस्थाओं में अध्यापन कार्य करने के पश्चात् कुचामन रोड स्थित श्री नेमिनाथ विद्यालय के प्रधानाध्यापक चुने गये। वहां 108 श्री वीरसागर जी का संघ पधारा और आपने द्वितीय प्रतिमा के व्रत ग्रहण किये। व्रतों में क्रमशः वृद्धि होती गई और आपने अखण्ड ब्रह्मचर्य व्रत लेकर सातवीं प्रतिमा धारण की।
सं. 2007 प्रथम आषाढ़ वदी पंचमी को बड़वानी सिद्धक्षेत्र पर श्री 108 आचार्य शांतिसागर जी की आज्ञा से आचार्य श्री महावीर कीर्ति जी महाराज ने आपको क्षुल्लक दीक्षा दी और आप क्षुल्लक ऋषभसागर कहलाने लगे। माघ सुदी 13 सं. 2009 में धर्मपुरी (निवास) पहुंचकर ऐलक दीक्षा ली और सुधर्मसागर के नवीन नाम से संस्कारित हुए। पुनः सोनागिर क्षेत्र पर फागुन सुदी 13 सं. 2009 को निर्गन्थ दीक्षा ली और आपका नाम श्री विमलसागर रखा गया।
मुनि दीक्षा के उपरान्त आपने 8 वर्ष कठोर तपस्या और गहन स्वाध्याय किया तथा उत्तर दक्षिण भारत का भ्रमण किया। कुछ समय उपरान्त
आपने अपना निज का संघ बनाया तथा अगहर वदी 2 सं. 2018 को टूंडला (आगरा) में पं. माणिकचन्द जी धर्मरत्न एवं विशाल जन समूह के बीच आपको आचार्यत्व पद दिया गया।
उपसर्ग, अतिशय एवं धर्मप्रभावना-आपका सम्पूर्ण जीवन उपसर्गों और घटनाओं का रहा है। जब आप अतिशय क्षेत्र बन्धाजी (टीकमगढ़) पहुंचे तो वहां के सूखे पड़े कुएं में शांतिधारा कराकर श्री आदि प्रभु का प्रक्षाल जल डलवा दिया और कुएं में जल ही जल हो गया। मिर्जापुर रास्ते में सिंह और विशालकाय अजगर का उपसर्ग हुआ। जौनपुर के रास्ते में 53
फ्याक्तीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास