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पूज्य आचार्य श्री सन्मतिसागरजी महाराज
जीवन का पुरुषार्थ संयम की साधना और इच्छाओं की विराधना में हैं। मुनि और जैन संतों का जीवन संयम की जीवन्त प्रतिमा हुआ करती है। वे संसार में रहकर उसके नहीं होते। वे कर्म करते हुए भी निष्कर्म रहते हैं ।
फफोतू जिला एटा उत्तर प्रदेश में श्री प्यारे लाल जी के पुत्ररत्न श्री ओमप्रकाश उन जीवात्माओं की श्रेणी में से एक हुए जिन्होंने स्वात्मकल्याण की लगन लगाई । साधारण परिस्थितियों में रहकर विद्याध्ययन किया । आप प्रारम्भ से साधु-संतों के सहवास में रहे और एक दिन वह आया जब फाल्गुन सुदी 13 सं. 2019 में आचार्य विमलसागर की धर्ममयी प्रेरणा से श्री सम्मेदशिखर की पुण्यस्थली से मुनिदीक्षा लेकर नये नाम सन्मतिसागर को सार्थक किया। उस समय आप बाल ब्रह्मचारी थे और आयु 25 वर्ष
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दीक्षोपरान्त आपने बाराबंकी, बड़वानी, मांगीतुंगी, श्रवणबेलगोला, हुम्मच, कुन्थलगिरि और गजपंथा आदि में अपने वर्षाकालीन चातुर्मास धर्माराधनापूर्वक व्यतीत किये।
आपने परमपूज्य आचार्य श्री महावीरकीर्ति जी महाराज से विधिवत् शास्त्रों का अध्ययन किया। आप महसाना में आचार्यश्री के समाधिकाल में उनके चरणों में ही उपस्थित थे । महाराज ने आपको अपने संघ का पट्टाधीश घोषित किया। तबसे आप वीतरागतापूर्वक संघ का संचालन कर रहे हैं ।
जुलाई 1995 में पूज्य आचार्यश्री सन्मतिसागरजी महाराज का वर्षायोग गांधीनगर दिल्ली में हुआ । सामाजिक व्यवधान एवं चातुर्मासिक व्यवस्थाओं के लिए एक धर्मशाला की आवश्यकता महसूस की गई। पद्मावती पुरवाल जाति के प्रबुद्ध व्यक्तियों से विचार-विमर्श कर श्री पद्मावती पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास
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