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है । कान्तिपुरी के स्थान पर कुतवार नामक ग्राम है। जिस समय ये दोनों स्थान महानगरों के रूप में बसे थे, उस समय गोपाद्रि ग्रोपों अर्थात गोपाल की भूमि थी और उसका विशेष महत्व नहीं था ।
जैनियों की चौरासी उपजातियों में एक 'पद्मावती पुरवाल' भी है। इसी उपजाति में रइधू नामक जैन कवि हुआ था। वह अपने आपको 'पोमावय कुल-कमल- दिवाकर' लिखता है। कुछ पद्मावतीपुरवाल अपना उद्गम ब्राह्मणों से बतलाते हैं । जैन जाति के आधुनिक विवेचकों को पद्मावती पुरवाल उपजाति के ब्राह्मण प्रसूत होने में घोर आपत्ति है । परन्तु इतिहास पद्मावती पुरवालों में प्रचलित अनुश्रुति का समर्थन करता है। जिसे वे पूज्यपाद देवनन्दि कहते हैं वह पद्मावती का नाग सम्राट देवनन्दि है । वह जन्म से ब्राह्मण था । उसकी मुद्रायें अत्यधिक संख्या में पद्मावती में प्राप्त होती हैं जिस पर 'चन्द' का लाच्छन मिलता है और 'श्री देवनागान्य या 'महाराजा देवेन्द्र' श्रुति वाक्य प्राप्त होते है। देवनाम का अनुमानित समय पहली ईस्वी शताब्दी है । पद्मावती पुरवालों में प्रचलित अनुश्रुति तथा पद्मावती के देवनाग का इतिहास एक दूसरे का पूरक है। ज्ञात होता है कि देवनन्दि अथवा उसके किसी पुत्र ने जैन धर्म ग्रहण कर लिया था और उसकी संतति अपने आपको पद्मावती पुरवाल जैन कहने लगी। जैन मुनि और जैन व्यापारी कभी एक स्थान पर बंधकर नहीं रहते। ये पद्मावती पुरवाल समस्त भारत में फैल गये, तथापि वे न तो पूज्यपाद देवनन्दि को भूले और न अपनी धात्री पद्मावती को ही भूल सके। इस प्रकार पद्मावती (पुर) नगर के रहने वाले पद्मावती पुरवाल कहाये ।
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पद्मावतीपुरवाल दिगम्बर जैन जाति का उद्भव और विकास