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मुलाराधना
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विचारित्रास्ते च ते दश पूर्विणश्च । विधानुवादपांठे स्वयमागत द्वादशशत विद्याभिरचलितचारित्रा इत्यर्थः ।
' सुनादो तं सम्मं दरसिज्जंतं ' ऐसा उपरकी गाथामें वाक्य आया है परंतु प्रमाणभूत सूत्रोंकी रचना किन्होंने की है ? ऐसा प्रश्न होने पर आचार्य उत्तर देते है-
हिंदी अर्थ - गणधररचित आगमको सूत्र कहते हैं. प्रत्येकबुद्ध ऋषिओंके द्वारा रचे गये आगमको भी सूत्र कहते हैं. श्रुतकेवली और अभिन्न देशपूर्वधारक आचार्योंके रचे हुए आगम ग्रंथको भी सूत्र कहते हैं. विशेषार्थ -- गणके चारा प्रकार है. चौदापूर्वके ज्ञाता मुनि, विक्रियाऋद्धिके धारक मुनि, अवधिज्ञानी मुनि, मन:पर्ययज्ञानी मुनि, वाद करनेवाले मुनि वगैरे बारा गण उनको रत्नत्रयधर्मका उपदेश देकर जो दुर्गतीसे बचाते हैं उनको गणधर कहते हैं. गणधरोंको सात ऋद्धियां प्राप्त होती हैं. उनके नाम इसप्रकार है-बुद्धि, तप, विक्रिया, औषधि, रम, चल और अक्षीण ऐसे सात ऋद्धिको प्राप्त हुए गणधरोंको मेरा नमस्कार हो गणधरोंने रचे हुए आगपको मूत्र कहते हैं. केनलिने रहावा ग्रमित करते हैं. इस विषय में 'अत्यं कहति अरुहा ग्रंथ गंधन्ति गणहरा तेर्सि ' अर्थात् केवल भगवान जो अर्थ कहते हैं उसका गणधर देव आगममें ग्रथन करते हैं. प्रत्येकबुद्ध ऋषियोंने रचे हुए शास्त्रोको भी सूत्र कहते हैं. श्रुतज्ञानावरण कर्मका क्षयोपशम होनेसे गुरूपदेशके बिना जिनको सातिशय ज्ञान होता है ऐसे महर्षियोंको प्रत्येकयुद्ध कहते हैं. द्वादशांगत ज्ञानको धारण करनेवाले महर्षियोंको श्रुतकेवलि कहते हैं. उनका कहा हुवा जो आगम वह भी सूत्र हैं.
अभिन्नशपूर्वके जाननेवाले आचार्योंके रचे हुए शास्त्रको भी सूत्र कहते हैं, दशपूर्वोका अध्ययन करते समय विद्यानुवादमें जिनका वर्णन है ऐसी अंगुष्ठप्रसेनादि क्षुक विद्या व प्रज्ञप्त्यादि महाविद्या इन आचार्योंके पास आ जाती है तथा वे आपना रूप दिखाकर सामर्थ्य और अपने कार्यका स्वरूप कहती हैं. आगे खडे होकर हे प्रभो ! हमे को कार्य करनेकी आज्ञा दीजिये ऐसी प्रार्थना करती हैं. उनका भाषण सुनकर आपसे हमारा कुछ कार्य नहीं है ऐसा जो ऋषि निचलचित्त होकर बोलते हैं. उनको अभिन्नदशपूर्वघर महर्षि कहते हैं. उपर्युक्त कहे हुए ऋषियोंके आगमको सूत्र कहते हैं.
प्रत्यक्षादिक प्रमाणोंके द्वारा केवलज्ञानके द्वारा और श्रुतज्ञानके द्वारा जाना हुवा वस्तुका स्वरूप रागद्वेष
आधास
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