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भगवान महावीर ने जिस समय इस वसुधरा को अपने जन्म से पावन किया उस समय विश्व की परिस्थितियां कैसी थीं, किन समस्याओं से उसे जूझना पड़ रहा था किस प्रकार हिंसा राक्षसी का ताण्डव हो रहा था यह सब बताते हुए विद्वान् लेखक ने भगवान् महावीर के जीवन का अति संक्षिप्त परिचय देते हए उन द्वारा उपदिष्ट मार्ग का साररूप में दिग्दर्शन अपने इस निबंध में किया है। उसने भगवान् महावीर के उपदेशों को तीन भागों में बांटा है
१. मनन चिंतन के लिए, २. अभ्यास के लिए तथा ३. लोक में सुखशांति हेतु आचरण के लिए।
वास्तव में भगवान् महावीर ने उपदेश दो विन्दुओं को दृष्टि में रखते हुए दिए । एक व्यक्ति को इकाई मान कर उसके पूर्ण आत्मोत्थान के लिए और दूसरे व्यक्ति को सामाजिक प्राणी मानते हुए विश्वशांति के लिए। उन्होंने बताया कि व्यक्ति समाज में किसी अन्य को बाधा पहुंचाये बिना किस प्रकार अपने आचरण से अपना और पर का कल्याण कर सकता है। स्व कल्याण में पर कल्याण और पर कल्याण में स्व कल्याण अन्तनिहित है।
-प्र० सम्पादक
भगवान् महावीर का जीवन
एवं उपदेश श्री नन्दकिशोर जैन, एम० ए०, संपादक 'ज्ञान-कीति' चौक, लखनऊ
धार्मिक पुनर्जागरण की दृष्टि से ईसा पूर्व एस समय भारत में सर्वत्र हिंसा तथा स्वार्थ छठी शताब्दी विश्व के इतिहास में अभूतपूर्व तथा का बोलबाला था। यज्ञों में पशुओं तथा कभीचिरस्मरणीय है। उस समय संसार के अनेक भागों कभी मनुष्यों तक की बलि धर्म के नाम पर की में अनेक महानात्माओं ने शोषित, पीड़ित, व्याकुल जाती थी। जनता धर्म के वाद्याडम्बरों, अन्ध मानवता को स्थानीय परिस्थितियों के अनुसार विश्वासों, मन्त्र-तन्त्र, सामाजिक कुरीतियों, दासप्रथा सुख-शांति का मार्ग बताया। लाप्रोत्से, कन्फ्यूशियस, आदि के कारण अति दुखी थी। स्वार्थपरता तथा पाइथागोरस आदि ने विश्व के अन्य भागों में देहात्म-बुद्धि के कारण अधिकाधिक भोग-उपभोग शान्ति से जीने की कला का उपदेश दिया तो सामग्री जुटाने तथा पंचेन्द्रिय विषयों को तृप्त करने भारत में बुद्ध तथा महावीर ने युग की पीडा को' में ही लोग सुख मानते थे। दैहिक, दैविक एवं पहिचाना तथा जनता के दुखों की सह-अनुभूति भौतिक किसी भी प्रकार की विपरीत परिस्थिति कर उसे उद्धार का मार्ग बताया।
उत्पन्न होने पर लोग अत्यन्त व्याकुल और दुखी
महाशीर जयन्ती स्मारिका 76
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