________________
- पंच मुक्तक
-
श्री लाडलीप्रसाद जैन पापड़ीबाल, स. माधोपुर
अपना कर्तव्य निभाले तो, सदियों की पीडा मिट जावे । भगवान वीर की वाणी को, पाले तो भव से तिर जावे ।।१।।
जीवो और जीने दो जग को, साकार मन्त्र जो अपना ले। वह स्वयं सुखी तो होगा ही, जग को सुख में वह बदला दे ॥२॥
तृष्णा पिशाचिनी जिसके पीछे, पड़ती, उस को कर सांस मिली। दिन रात हविस बढ़ते-बढ़ते, जीवन की घड़ियां बीत चली ।।३।।
नवकार मन्त्र का जाप करो, सुख शांति सुधा मिल जावेगा। जो राग-द्वेष को जीत लिया, तो वीतराग . बन जावेगा ।।४।।
वे वीतराग थे वीर प्रभु, महावीर नाम सन्मति पाया। अतिवीर बने वे वर्द्धमान, जिन का सयश जग ने गाया ॥५॥
महावीर जयन्ती स्मारिका 76
1-172
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org