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मुनि श्री मांगीलाल 'मुकुल' ने उत्तराध्ययन साहित्यिक नाटक-(७) वर्द्धमान महावीरसूत्र के दसवें अध्ययन का सरस पद्यानुवाद प्रस्तुत ब्रजकिशोरनारायण। (८) महासती चंदनबालाकिया है जिसका शीर्षक है : भगवान् महावीर की महेन्द्र जैन । अंतिम वाणी।
__ 'वर्द्धमान-रूपायन' के रूप में कुथा जैन ने वैद्य चुन्नीलाल धामी ने गुजराती भाषा में उपरिलिखित तीन रूपक प्रस्तुत किये हैं। ये विभिन्न तीर्थङ्कर महावीर पर एक उपन्यास लिखा है महोत्सवों पर मंच पर खेले जाने योग्य नाट्य रूपक जिसका अनुवाद हिन्दी में हो चुका है।
हैं जिनका सम्बन्ध भगवान् महावीर के अलौकिक
जीवन, उनके उपदेश तथा सिद्धान्तों के विश्वव्यापी संस्कृत, प्राकृत तथा अपभ्रंश के अनेक ग्रन्थों
प्रभाव से हैं। ये कथ्य तथा शैली-शिल्प में सर्वथा का हिन्दी अनुवाद हो चुका है।
नूतन हैं। इनमें रंग-सज्जा और प्रकाश-छाया के गद्य-वाङमय में तीर्थंकर महावीर :
प्रयोगों की चमत्कारी भूमिका का निर्वाह किया
गया है। इनमें कथा जैन के काव्य-सौष्ठव का ___काव्य-साहित्य की भांति हिन्दी के गद्य-वाङमय
निखार भी दृष्टव्य है। में भी तीर्थकर महावीर की यशोगाथा पुनीत रूप में विराजमान है । प्रायः समस्त गद्य की विधाओं
उपरिलिखित पुस्तक (सन् १९७५) महावीर में महावीर पर रचनाएं मिलती हैं जिनका आकलन निर्वाण-शताब्दी-वर्ष की एक उल्लेखनीय कृति है । निम्नलिखित उपशीर्षकों के अन्तर्गत किया जा अपनी औली शिल्प तथा विषय की दृष्टि से इस रहा है :
पुस्तक को पृथक से निरखा-परखा जा सकता है। (क) नाटकों में तीर्थंकर महावीर :
विदुषी लेखिका की भाषा परिमार्जित तथा शैली
सधी हुई है। तीर्थङ्कर महावीर स्वामी के जीवन भगवान् महावीर को लेकर नाटक के निम्न
की दिव्यता, उनकी कठोर तपस्या-साधना, वैज्ञानिक भेदों में रचनाएं लिखी गयी हैं ।
दृष्टिकोण एवं चिरंतन परहित के आलोक से मंडित संगीत नाटिका : (१) ज्योतिपुरुष महावीर : प्रेरक उपदेशों को इस पुस्तक में परम अनुभूतिमयी ध्यानसिंह तोमर 'राजा' (२) जयंती जोशी-प्रेम- एवं प्रात्मीय अभिव्यंजना मिली है। सौरभ : संगीत नाटिका ।
उपरिलिखित तीनों नाट्य रचनाओं में 'दिव्य रेडियो रूपक--(३) मान स्तम्भः कथा जैन, ध्वनि छंद' (संगीत नृत्य-नाटिका) का सर्वोपरि दिल्ली।
स्थान है। इसमें स्वामी महावीर की जीवन साधना
तथा उनके उपदेशों को चिरंतन महत्व तथा सर्वयुछंद-नत्य-नाटिका--(४) दिव्य ध्वनि : कुथा गीन भावना के साथ अत्यन्त कलात्मक रूप में जैन ।
सम्प्रक्त किया गया है। यह गागर में सागर है ।
इसका प्रथम दृश्य उदात्त तथा महान् है । मंच नाटक --- (५) वीतराग : कुथा जैन । (६) आत्मजयी महावीर (मूल उपन्यासकार वीरे- उपर्युक्त पुस्तक की भूमिका अत्यन्त महत्वपूर्ण न्द्र कुमार जैन के उपन्यास 'अनुत्तर योगी' का और सारगर्भित है। उसमें बौद्धिकता तथा आधुमंचीय नाटक-रूप)--डा० शीतला मिश्र । निकता से समन्वित अनेक प्रकरणों की विवेचना
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महावीर जयन्ती स्मारिका 76
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