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हुए बोला- पिताजी के पास कुछ नहीं था तो नं सही तुम्हारे पास तो है । तुम्हीं दे दो ।
वृजलाल को अपने शब्दों पर तरस आने लगा । वे बोले-ठीक है तो तुम्हें घोड़ा चाहिये-ले जाओ । मेरे पास घोड़े के अतिरिक्त है ही क्या । इसी पर बो ढोता हूं और सात बच्चों को पालता हूं । अब यदि तुम्हें चाहिये तो ले जाओ तुम्हीं । कुछ दिन तुम्हारे बच्चे भूखे रह चुके अब मेरे रहेंगे । वृजलाल के रुके हुए आंसू बाहर सरक आये फिर घोड़े की रास मोहन को सौंपते हुए कहने लगे-जल्दी चले जाश्रो, रात हो रही है ।
घोड़ा मोहन को देकर वृजलाल एक श्रदृश्य प्रसन्नता का अनुभव करने लगे मन में । उन्हें गौरवानुभूति हुई - मैंने अपनी कमाई में पहली बार अपने छोटे भाई को कुछ दिया है । फिर रुक कर मोहन से बोले-घर पहुंचकर अच्छे-भले की खबर देना । और शिखर के साथ वापस हो लिये ।
मोहन घोड़े की रास हाथ में देखकर ग्लानि से गड़ने लगा उसे लगा वह बड़े भाई का राजपाट छीन रहा 1 "नहीं नहीं मैं ऐसा नहीं कर सकता ।" वृजलाल एक खेत जगह चले होंगे कि मोहन चिल्ला-चिल्ला कर पुकारने लगा- भैया, मैया, और वृजलाल मुड़कर निहा रने लगा । मोहन घोड़ा लेकर उनके पास पहुंचा । उनके पैरों से लग गया। घोड़े की रास उन्हें देते हुए बोला- भैया मुझे क्षमा कर दो। मैं भूख में लाज - लिहाज - संकोच सब कुछ भूल गया था । यह घोड़ा आप ही ले जाये यह पिताजी की जायदाद का अंश नहीं है । इस पर आपका अधिकार है । मैं आपसे इसे न ले सकूंगा ।
महावीर जयन्ती स्मारिका 76
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वृजलाल आत्मीयता से बोले-अरेपगले ! मुझे ही यह स्वेच्छा से दे देना था, आाखिर मैं तेरा बड़ा भाई ही हूं । मेरा भी तेरे प्रति कुछ कर्त्तव्य हो जाता है। घंटों बीत गये घोड़ा लेने को कोई तैयार नहीं था । मोहन के गिड़गिड़ाने पर अन्त में बृज - लाल ने रास संभाल ली । "तो फिर तुझे क्या दू वृजलाल पूछने लगे ।
?"
मोहन नीचे देखते-देखते घोड़े पर लदे अनाज को देखने लगा । वृजलाल मोहन की नजरें परख गये । वह बोला- प्रच्छा थोड़ा सा अनाज ले जा । सुनते ही मोहन मुस्काने लगा । चेहरे पर उत्सुकता बिखेरता हुआ बोला- हां भैया अनाज दे दो । वृजलाल ने अनाज उसकी ओर उड़लते हुए कहा- लो यह बांध लो । मोहन फिर नीचे देखने लगा । उसके पास कोई कपड़ा तक नहीं था जिसमें वह अनाज बांधता । वृजलाल शादी से लौटे थे उनके कांवे पर एक चद्दर था। उन्होंने उसी चद्दर में अनाज बांधकर मोहन को दे दिया और बोले- अभी कोई बस निकलेगी तो बैठकर चले जाना । बस ? मोहन के चेहरे पर आश्चर्य बिखर गया । वृजलाल ताड़ गये कि बस की टिकिट के लिये भी मोहन के पास पैसे नहीं हैं । उन्होंने अपनी कमर में लपेटें गये एक रुपये के नोट को जिसे शादी से निर्विघ्न बच्चाकर ले आये थे निकालकर मोहन के हाथ में रख दिया और उसकी पीठ थपथपाकर रामपुरा की ओर बढ़े गये ।..
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मोहन बस के नाते तक नजर धरती में गड़ाये - रहा और सोचता रहा कि बड़े भैया की गरीबी दूर कैसे हो ?
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