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दौलत-दौलत हैकाली नहीं, गौरी नहीं, हमें ग्रहरणीय नहीं है. अदत्ता-धन. क्योंकि, धनार्जन के और भी तरीके हैं - जैसे-धर्मादा, गौशाला, पौशाला, सभी जनता से काटते हैं, उनका पैसा, उन्हीं में बांटते हैं। पारिश्रमिक की बचत से कोठी बनाते हैं, इतने नियोजित रूप से
अणुव्रत-प्रांदोलन चलाते हैं । 4. ब्रह्मचर्य
5. अपरिग्रह 'शील वाढ़ि नौ राखि
हमें याद हैब्रह्म भाव अंतर लख्यो' का सिद्धांत, 'मूर्छा परिग्रहः' की परिभाषा, जीवन में उतारा है,
हम धन की लिप्सा में लिप्त नहीं, आत्म-कल्याण के प्रवचन के बीच, किन्तु, धनार्जन की क्रिया में अलिप्त नहीं ब्रह्म को पुकारा है,
क्योंकि, धन को हमनेलेकिन
दो भागों में विभक्त कर दिया है, अचार-मुरब्बे के डिब्बे तक छपे--
जो सीमित है-वह अपरिग्रह है-- प्रध-नग्न-नारी के चित्र ?
उसे एक नंबर में भर दिया है। यह सब, अश्लीलता नहीं ?
जो असीमित है-वह परिग्रह हैनहीं
इसलिये दो नम्बर हैव्यावसायिक-विज्ञापन है,
उसे धरती में धर दिया है। सौन्दर्य-बोध से अपनापन है,
यह सनद है-हमारे अपरिग्रही होने की प्रोपेरा-हाउस के केबरे डांस ?
क्योंकि उसे-हम दान में चढ़ाते हैं, शुद्ध, सात्विक मनोरंजन है,
ऐश में उड़ाते हैं, तस्करी चलाते हैं, गर्ल-फ्रन्ड के साथ कार में जाते हैं,
धूम से रचाते हैं-बेटी का ब्याह इतने नियोजित रूप से
मुखबिर लग जाये तो 'मीसा' में जाते हैं अणुव्रत-अांदोलन चलाते हैं,
इतने नियोजित रूप से अणुव्रत-आंदोलन चलाते हैं,
महावीर जयन्ती स्मारिका 76
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