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व्यंगात्मक रचना
चर्या के दर्पण में चर्चा के चहरे
.श्री मगनलाल 'कमल' गुना (म० प्र०) 1. अहिंसा
2. सत्य 'अहिंसा परमोधर्मः'
हम कभी झूठ नहीं बोलते, यही नारा तो
गांठ बंधे सत्य को कभी नहीं खोलते, तुमने दिया है,
संस्थानों में लगी एक दाम की प्लेट, हमने भी
कार्यालयों पर प्रामाणिक वकील का बोर्ड, व्यक्तिगत जीवन से लेकर,
चिकित्सालयों में -असाध्य रोगों के समष्टिगत-जीवन तक
एक मात्र चिकित्सक। इसी की दम पर जिया है।
राजनैतिक मंच पर, जनता के सेवक, शत्रु को हम
सत्य के समग्र-स्वरूप कोशास्त्र से नहीं,
यूग के काल-पात्र में भर करघात से मारते हैं।
धरती के सीने में रख दिया है, चौराहों पर लगे वैनर्स पर,
सोने के ढक्कन से ढक दिया है। अहिंसा के उपदेशों को,
इसीलिये हमारीनियोन-लाइट से उभारते हैं,
प्रांतरिक-संरचना के बिम्ब -- शस्त्र-निरपेक्ष शौर्य से--
बिंबित नहीं होते चेहरे पर-हिंसा को डराते हैं।
सहज भाव से सत्य के गीत गाते हैं इतने नियोजित रूप से
इतने नियोजित रूप सेअणुव्रत-यांदोलन चलाते हैं। .. अणुव्रत-प्रांदोलन चलाते हैं,
3. प्रचौर्य तुम्हीं ने कहा था'प्रदत्ता-दान चोरी है हमने भी आज तकपारोपित नहीं होने दियाचोरी का आरोप। माल की अफरा-तफरी से लेकर शासकीय करों तक, बचत की है, चोरी नहीं।
महावीर जयन्ती स्मारिका 76
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