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१२. मागधानां च विपुलं भयं जनयन् हस्त्यश्वं
गङ्गायां पाययति; मागधं च राजानं बृहस्पतिमित्र पादौ वन्दयति; नन्दराज नीतं च कलिङ्ग-जिनं सन्निवेश........... अङ्गमगध-वसु च नयति; ........
१३. कत्त जठर--लक्ष्मील-गोपुराणि शिखराणि निवेशयति शत-विंशकानी परिहारैः, अद्भुतम् आश्चर्य च हस्तिनिवास प्रतिहरति"........." हयहस्तिरत्नमाणिक्य, पाण्ड्यराजात्... .. मुक्ता-मणि-रत्नानि प्राहारयति इह शतसहस्राणि .............
हिन्दी अनुवाद १. अहंतों को नमस्कार । सब सिद्धों को नमस्कार । ऐल महाराज, महामेघवाहन, चेदिराज वंशवद्धन, प्रशस्त एवं शुभ लक्षणवाले चतुरंत (चतुर्दिक) व्यापी गुणों से
कलिंगाधिपति श्रीखारवेल ने २. पन्द्रह वर्षों तक गौरवर्णवाले शरीर से
बाल्यकाल की क्रीड़ायें की। तत्पश्चात् लेख, रूप, गणना, व्यवहार और धर्म में निष्णात होकर सब विद्याओं से परिशुद्ध उन्होंने नौं वर्षों तक यौवराज्य प्रशासित किया। चौबीस वर्ष पूर्ण करने वाले, शैशवावस्था से ही वर्द्धमान, वेनतुल्य विजयवाले उस (ने) तीसरी ३. पीढ़ी में कलिंग के राजवंश में महाराज्याभिषेक
प्राप्त किया। अभिषेक होते ही, प्रथम शासन वर्ष में, तूफान से गिरे हुए (राजधानी के) गोपुर और प्राकार-निवास का जीर्णोद्धार कराया। कलिंग की राजधानी में ऋषि खिवीर नामक झील और ऋषि ताल-तड़ागों का निर्माण कराया और समस्त उद्यान प्रतिस्थापित कराये।
१४. वासिनः वशीकरोति । त्रयोदशे च वर्षे सुप्रवृत
विजयचक्र कुमारीपर्वते अर्हद्भधः प्रक्षीरणसंश्रितेभ्यः काय-निषद्यायै यापोद्यापकेभ्यः राजमृतानां चीर्णव्रतानां वर्षाश्रितानां पूजानुरतोपासक-खारवेलश्रिया जीवदेहाश्रयिका:
परिखानिताः (1) १५. ............... सत्कृतश्रमणः सुविहितानां च
सर्वदिशानां ज्ञानिनां तपस्वयषीणां संङ्घीयानाम् अर्हन्निषद्या-समीपे प्रागभारे वराकारसमुत्थापिताभिः अनेकयोजनाहृताभिः........ शिलाभिः
१६, चत्वरे च वैदूर्यगर्भ स्तम्भं प्रतिष्ठापयति
पञ्चोत्तरशत-सहस्र: मुख्यकलावच्छिन्नं चतुःषष्ठ्यङ्ग शान्तिकं तौर्य उत्पादयति [1] क्षेमराजः स वृद्धराज सः भिक्षुराजः धर्मराजः पश्यन् शृण्वन् अनुभवन् कल्याणानि... ...
४. पैतीस लाख प्रजा का रंजन किया। दूसरे वर्ष में, सातकणि राजा की कुछ चिन्ता न करते हुए पश्चिम दिशा की ओर विजय प्राप्त करने के लिए अश्व, गज, पैदल और रथवाली एक विशाल सेना भेजी। कन्हबेना (कृष्णवेणा नदी) तट पर पहुंची सेना ने असिकनगर को बहुत त्रस्त किया। तत्पश्चात् तीसरे वर्ष
१७. गुणविशेष-कुशलः सर्वपार्षद-पूजकः सर्वदेवा
यतन-संस्कार-कारकः अप्रतिहत-चक्रवाहिनीबलः चक्रधरः गुप्त-चक्रः प्रवृत-चक्रः राजर्षि-वसु- कुल-विनिःसृतः महाविजयः राजा खारवेलश्रीः
५. में गंधर्वशास्त्रविद खारवेल ने नाटक, नृत्य,
गीत, वादित्र के आयोजन के द्वारा उत्सव एवं समाज कराकर नगरी को आनन्दित किया ।
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महावीर जयन्ती स्मारिका 76
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