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इसकी पुष्टि स्वयं पुराण करते हैं । देव परदेशी थे । अपेक्षाकृत नये थे और जम रहे थे असुर सभ्य और युद्ध शास्त्र में विज्ञ थे इसलिए इनका पलड़ा आरम्भ में भारी रहा । फलस्वरूप देवों ने अनेक बार संधि की । इन्द्र देवों की महत्वाकांक्षा को पूरा करने वाला महत्वपूर्ण पद बन गया । बाद में तो इन्द्र लोक व्याप्त महत्ता पा गया । यद्यपि यह इन्द्र बहुत शक्तिशाली प्रारम्भ में न था । 2 कई बार उपेन्द्र (विष्णु) ने संधि करने की सलाह भी दी । ३ इस प्रकार देवों ने छल और बल का सहारा लेना
1. अ-प्रथ देवासुरं युद्धमभूद वर्ष शतत्रयम् ।
ब- देवासुरमभूद युद्ध, दिव्य मब्दशतं पुरा । तस्मिन पराजिता देव, दैत्यैर्यादपुरोगमैः ॥ 2 अशक्तः पूर्वामासीत्वं कथंचिच्छक्ततां गतः कस्त्वदन्य इमां वचं सूक्रूरां वक्तुमर्हसि । 3. गत्वा तत्र सुराः सर्वे संधि कुरुतः दानवैः ।
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प्रारम्भ किया। मुझे ऐसा प्रतीत होता है कि देवासुर संग्राम की इन सैकड़ों घटनाओं ने जिन शौर्य गाथाओं एवं लोकगीतों को जन्म दिया वामन बलि कथा को गूंथने वाली विष्णु गीतिका भी उन्हीं में से एक है । छल-बल, छद्मवेश धारण कर, देवों की असुरों पर विजय की एक यशोगाथा, कालान्तर में असुर के सूर्य के त्रिविक्रम का, दिन चर्या का आधार लेकर पल्लवित कथा है, बुनी गई यह त्रिविक्रम कथा |
मत्स्य पुराण 24 / 37
विष्णु पुराण 3 / 17 / 9
महाभारत शान्तिपर्व 227 / 22 कर्म पुराण अ० 38 / 7
महावीर ने बार-बार कहा है
डा० भागचन्द जैन भास्कर, सदर नागपुर
महावीर ने बार-बार कहा है परखो हमारे हर हीरे को चरणों की हर धूलि के करण को । निष्पक्ष की घुरा पर बैठकर
महावीर जयन्ती स्मारिका 76
शान्ति की तुला पर तौलकर समझो हमारे मर्मी धर्म को
बचाओ और पालो मानवता को कगर को ||
जहां अजस्र शान्ति है
नयी दिशा क्रान्ति है । न भ्रान्ति है, न भेद है, न विखराव न टकराव है ।
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