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आचार्य कुंदकुंद : एक व्यक्तित्व
-श्री प्रकाश हितैषी शास्त्री
__ सं० सन्मति सन्देश, नई दिल्ली श्रमणधारा के तत्त्वचिंतन के इतिहास में ग्रंथ परिकर्मकर्ता षट्खण्डाद्य त्रिखण्डस्य ।।160प्रागमपरंपरा के प्रमुखचितक, तत्त्वान्वेषी, स्वानु- 161।। पद्मनंदि इनका दीक्षा नाम था। भूति स्वसंवेद्य, कारण परमात्मा के सहजानंद को प्राप्त, प्राचार्य परम्परा के मूर्धन्य संदेशसंवाहक,
वंश एवं जन्म स्थान चारित्र चक्रवर्ती, प्राध्यात्म ज्ञानगंगा के स्रोत जिनका
- नाथूरामजी प्रेमी के अनुसार आप द्रविड़ नाम भगवान् महावीर और गौतम गणधर के
देशस्थ कोण्डकुण्ड नगर के रहने वाले थे। इसी पश्चात् स्मरण किया जाता है ऐसे कुन्दकुन्दाचार्य
कारण आप कुन्दकुन्द नाम से प्रसिद्ध हुये थे । नंदिका व्यक्तित्व भास्वर भास्कर के समान प्रकाश
संघ बलात्कारगरण की गुर्वावली के अनुसार प्राप मान है । रत्नत्रय का यथेष्ट समन्वय आपमें
नंदिसंघ के प्राचार्य थे। जिस परंपरा में भद्रवाहु, परिपूर्णतया परिलक्षित होता है ।
माघनंदि प्रथम, जिनचंद और इनके शिष्य कुन्दकुन्द ... उन्होंने तत्कालीन प्रचलित भाषा में परमतत्त्व (पद्मनंदि) थे। आप प्राचार्य जिनचंद के शिष्य का अनुभूत सार निबद्ध किया है । जिसे कोई भी और उमास्वामी के गुरु थे । यह नंदिसंघ प्राचार्य मानव अपनी स्वानुभूति के द्वारा प्राप्त कर सकता अहबलि द्वारा वी०नि० सं० 593 में स्थापित है । आपने उस अनुपम अखण्ड शाश्वत आनंद प्राप्त हया था। नंदि संघ बलात्कारगण की पट्टावली के करने वालों का मार्ग प्रशस्त किया है कि प्रात्म- अनुसार-श्री मूलसंधेऽजनि नंदिसंघस्ततस्मिन् ज्ञान के बिना उस परमात्मतत्त्व की प्राप्ति कभी बलात्कारगणोऽति रम्यः । तत्राभवद्पूर्वपदांशवेदी भी नहीं हो सकती है। प्रात्मज्ञान स्वानुभूति का श्री माघनंदी नरदेववंद्यः । पदे तदीये मुनिमान्यविषय है । और वह स्वानुभूति तत्त्वनिर्णय से प्राप्त वृत्तौ जिनादिचन्द्रः समभूदतन्द्रः । ततोऽभवत्पंच होती है । अतः आपके ग्रंथों में तत्त्व निर्णय की सुनामधामा श्री पद्मनंदि मुनि चक्रवर्ती । श्री प्रधानता है।
मूलसंघ में नंदिसंघ है, उसमें अतिरम्य बलात्कारआप अध्यात्म प्रधानी होकर चारों अनुयोगों गण है, उसमें अपूर्व पदांशवेदी, नरसुरवंद्य माघनंदि के अधिकारपूर्ण पारंगत विद्वान् थे । अापने करणा- आचार्य हुए हैं। उनके शिष्य मुनिमान्य जिनचंद्र नुयोग के मूलभूत ग्रंथ षखंडागम पर एक तथा उनसे पंचनाम धारी श्री पद्मनंदि (कुन्दकुन्द) 'परिकर्म' नाम की टीका लिखी थी। श्रु तावतार मुनि चक्रवर्ति हुए हैं । में कहा है
अपरनाम गुरु परिपाट्या ज्ञातः सिद्धान्तः कोण्डकुन्दपुरे श्री पद्मनंदि मुनिना सोऽपि द्वादश सहस्रपरिमाणः उनके पांच नाम प्रसिद्ध थे-कुन्दकुन्द, वक्रग्रीव,
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महावीर जयन्ती स्मारिका 76
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