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उल्लेख है । छांदोग्योपनिषद् के ३।१७।६ सूक्त के काल निर्णय अनुसार श्री कृष्ण के गुरु घोर अंगरिस ऋषि थे और 'ज्ञातृ धर्म कथा' में अरिष्टनेमि को अंगरिस का गुरु माना है । इसी काल में श्रंगारिस नामक प्रत्येक बुद्ध का उल्लेख इसी 'भासिय' में मिलता है । अतः अंगरिस और ग्ररिष्टनेमि समकालीन प्रतीत होते हैं । इन सब बातों से यह प्रगट हो जाता है कि वैदिक काल के पूर्व श्ररिष्टनेमि हो चुके थे ।
में
उत्तराध्ययन टीका ( पृ० २७६-८२ ) में नेमि और कृष्ण का श्रायुधशाला को उठाने धनुषबाण का प्रसंग एवं इसी ग्रन्थ के पृ० ३६ श्र० ४७ में भ० नेमिनाथ का समोशररण द्वारका में आने पर द्वारिका दहन तथा राजकुमार (जरा) के बाण से भ्रांति के कारण श्री कृष्ण की मृत्यु की भविष्यवाणी नेमिनाथ ने की थी। द्वारका दहन एवं कृष्ण की मृत्यु का ऐसा ही वर्णन भागवत् में भी प्राता है, किन्तु वहां नेमि का उल्लेख नहीं है ।"
एपीफिया इंडिका ( जिल्द १, पृ० ३८९ ) में डॉ० फुहरेर तथा डॉ० रामसन ने 'मेडिविल क्षत्रिय क्लकांस ग्राव इंडिया' पुस्तक की भूमिका में नेमि को ऐतिहासिक महापुरुष सिद्ध किया है, जिसका समर्थन श्री डॉ० हरिसत्य भट्टाचार्य ने अपनी पुस्तक 'भगवान् अरिष्ट नेमि' में कई नए तर्कों के साथ किया है । उन्होंने नेमि को कृष्ण का चचेरा भाई माना है । "
इस प्रकार भ० नेमिनाथ ऐतिहासिक महापुरुष थे और श्री कृष्ण के चचेरे भाई थे ।
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भ० नेमिनाथ कब पैदा हुए ? यह एक विवादास्पद विषय चलता श्रा रहा है । किन्तु, जब यह प्रमाणित होता है कि नेमिनाथ श्री कृष्ण के समकालीन थे तो उनका काल निर्णय भी हो सकता है ।
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श्री कृष्ण का समय महाभारत के समय माना जाता है । महाभारत कब हुआ ? इस पर भी विभिन्न मत है । श्री शंकर बालकृष्ण दीक्षित ने ज्योतिष के आधार पर महाभारत का समय ई. पू. १४२१ माना है । भारत के पुरातात्विक सर्वेक्षण के भू० पू० महानिर्देशक डॉ० बी० बी० लाल ने महाभारतकालीन स्थलों की खुदाई के बाद यह मत प्रतिपादित किया है कि महाभारत का युद्ध ई० पू० ११०० से ई० पू० ६०० के मध्य हुआ 17 श्री मोदक ने इसे ई० पू० ५०२५ माना है । वराहमिहिर तथा प्रार्य भट्टीय ज्योतिष गणित के अनुसार इसे ई० पू० ३१०२ स्वीकार किया है । भारत की धार्मिक परम्परा इसे ई० पू० ५००० मानती है । ई० पू० ३१०२ के आसपास का महाभारत का समय ज्यादा युक्तिसंगत प्रतीत हुआ है। क्योंकि महाभारत के आदि पर्व २।१३ में लिखा है
अंतरे चैव संप्राप्ते समंत पंचके युद्ध
इसी तरह
४. वीर निर्वारण स्मारिका १६७५ पृ० २-८५
५.
'अरिष्टनेमि और श्री कृष्ण' - श्री राजाराम जैन, 'अहिंसा-वाणी' फरवरी मार्च ५५ पृ० ५२. भ० अरिष्टनेमि पृ० ८८-८६.
सी० वी० वेद कृत दी महाभारत ए क्रिटिसिज्म- पृ० ६०-७० दीक्षित कृत भारतीय ज्योतिष पृ० १८०.
कलि द्वापरयो भूत् । कुरुपाण्डवसेनयोः ॥
द्वापरस्य कलेश्चैव संघो पार्यव सखानिके । प्रादुर्भावः कंस हर्तो मथुरायां भविष्यति ।। - शांति पर्व ३३६/८६, ६० ( गीता प्रेस, गोरखपुर )
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महावीर जयन्ती स्मारिका 76
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