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अहिंसा के पहागे पुष्पों में से मानवता की कलियाँ उभरी हैं । मन के बिखरे रूपों में नूतनता की खुशियां बैठी हैं । भावों का सौन्दर्य जगा है प्रम का रस छलका है सद्भाव और एकता की हर सांसों में नया प्राण उभरा है। ज्ञान की नयी ज्योति में नया तेज चमका है ।। यही है पावन जीवन अमृत रस का सिञ्चन आत्म संयम की सरिता में भावों का अनुवर्तन। करुणा का आवाहन साधारणीकरण की अनुभूति में समन्वय का अवगाहन । पड़ोसी-पड़ोसी से मिलकर रहेगा राष्ट्र-राष्ट्र में समझ बढ़ेगी। एक दूसरे के अस्तित्व की स्वीकारिता बनी रहेगी ।। फिर न होगा संघर्ष न होगा विश्वयुद्ध । समान अधिकार होगा शुद्ध ।।। विश्व शान्ति का सन्देश घर-घर मे जायेगा। दानवता की मजबूत कगारे टूट-टूट बिखरायेगा। प्राणि-प्राणि के बीच प्रेम का पाठ पढ़ायेगा और मानवता का संसार एक बार फिर बस जायेगा ।
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महावीर जयन्ती स्मारिका 76
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