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राणा राजसिंह ने एक पत्र लिख कर विरोध किया कल्याणसिंह जैन द्वारा उदयपुर में चातुर्मास हेतु जिससे नाराज होकर 3-9-1679 ई. के उसने आमंत्रित किया और उनके वहां पवारने पर शाही मारवाड़ (मेवाड़ ?) पर आक्रमण कर दिया। इस ठाठ से उनका स्वागत किया और एक प्राज्ञा युद्ध में जैन सेनापति दयालदास ने वह वीरता दिखाई द्वारा पीछोला सरोवर और उदयसागर नामक कि मुगल सेनापति आजमखां को भागना पड़ा। झीलों में मछलियों का शिकार और उनको
पकड़ना बन्द कर दिया। जैन मंदिरों का जीर्णोद्धार महाराणा जसवन्तसिंह ने भी जैन पवित्र दिनों
कराया तथा ऋषभदेव की पूजा की । में अर्थात् दोयज, पंचमी, अष्टमी, एकादशी और चतुर्दशी को तेल के कोल्हू, शराब की भट्टिया, जीव राठौड़ राव सीहोजी के पुत्र आयस्थानजी ने वध आदि हिंसक कार्य रोकने के लिए कानून बना कन्नौज से आकर 1180 ई. में अपना राज्य जोधपुर रखा था और इनका उल्लंघन करने वाले के लिए में स्थापित किया । वह जैन थे । इनके पुत्र धुहड़जी 250 रु० जुर्माना निश्चित कर रखा था। (1204-1228 ई०) भी अहिंसा व्रत का पालन
करते थे। इनके पुत्र रायपाल (1228 ई०) भी महाराणा संग्रामसिह द्वितीय के सेनापति जैन धर्मातरागी थे। इनके पत्र मोहन ने जैन मनि कोठारी भीमसी भी जैन थे। मुगल सेनापति
शिवसेन के उपदेश से प्रभावित हो जैनधर्म ग्रहण रणबाजखां द्वारा मेवाड़ पर आक्रमण होने पर जब
कर लिया था। इनके पूत्र सम्पतिसेन ने भी जैनराणा ने उनके सेनापतित्व में उससे लड़ने को सेना
धर्म अपनाया।
के भेजी तो राजपूत सरदारों ने उन से मजाक के तौर पर कहा था-'कोठारीजी, वहां जान हथेली पर बीकानेर को जोधपुर नरेश जोधामिह के पुत्र रखनी है, आटा नहीं तौलना है।' कोठारीजी ने राव बीकाजी ने बसाया था जिके मंत्री वत्सराज प्रत्युत्तर में कहा था-'वहां तो मैं दोनों हाथों से जैन थे। इन्होंने प्रचीन किले की नींव डालते समय आटा तोलूगा तब देखना ।' युद्ध में घोड़े की लगाम मूलनायक ऋषभदेव युक्त 24 तीर्थंकरों का मंदिर कमर से बांध दोनों हाथों में नंगी तलवारें ले उन्होंने बनवाया। इन्होंने ही करोड़ों रुपयों की लागत से सरदारों को ललकारा-आवो और देखो दोनों सुमतिनाथ का मंदिर भी बनवाया जो दस साल में हाथों से प्राटा किस तरह तुलता है। यह कह वे बन कर 1514 ई० में तैयार हा । बीकाजी के मुगल सेना पर जो कि संख्या में बहुत अधिक थी, उत्तराधिकारी राव लूणकरण के मंत्री कर्मसिंह भी भूखे सिंह की तरह टूट पड़े । उनको इस वीरता जैन थे इन्होंने 21 वें तीर्थंकर नेमिनाथ का मंदिर से लड़ते देख राजपूत सरदार तो क्या मुगल भी बनवाया । राव लूणकरण के उत्तराधिकारी दांतों तले अंगुली दबाने लगे।
जयतसी के मन्त्री वरसिंह और नागराज जैन थे, ____ महाराणा उदयसिंह ने उदयपुर के जैन मंदिर राव कल्याणमल जिन्होंने चातुर्मास में तेल पीड़ने को कई ग्राम भेंट किए। महाराणा जगतसिंह ने के प्रावा लगाने बन्द कर दिये थे, के मन्त्री संग्रामजैनाचार्य विजयदेवसूरि को अपने प्रधानमन्त्री सिंह भी जैन थे । राजा रायसिंह के मंत्री कर्मचन्द
1. टाड्स राजस्थान भाग 2 अध्याय 12पृष्ठ 397 । 2. जैन सिद्धांत भास्कर जनवरी 1947 पृष्ठ 117 । 3-5 सिंधी जैन सीरिज वाल्यूम XIV Intrd. 32-33. राजपूताने जैन वीर पृष्ठ 115-116 ।
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महावीर जयन्ती स्मारिका 76
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