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छेड़ दो
.श्री रमेशचन्द्र बाँझल शास्त्री, सर हु० संस्कृत महाविद्यालय
जंवरी बाग, इन्दौर
चेतन जगो तुम छेड़ दो, सम्यक्त्व का सोया तराना । समता नहीं मिथ्यात्व में रह, जुल्म सहने का जमाना ।।
हैं लुटेरे ज्ञान धन के, ध्यान बल से सर कुचल दो। संसार के इन कारणों को
प्रात्म संयम से मसल दो ।। भव भ्रमाती हैं कषायें, इनसे नाता तोड़ दो । वासना के बन्धनों में, चित रमाना छोड़ दो ।।
तन वशन में है मगन, यह रंगीली तितलियों में । भ्रमर-सा मद-मत्त होकर,
मंदिरा भरी इन प्यालियों में ।। मानता अपना जिन्हें तू, स्वार्थ मय हैं ये सभी जन । छोड़ देंगे साथ इक दिन, धन कुटुम्बी और यौवन ।।
कर ममत का त्याग अब तुम, मुक्ति पथ में चल पड़ो । स्वीकार मुनिव्रत प्रात्म से,
रत्नत्रय सम्यक् गढ़ो ।। स्व चतुष्टय धन बना कर, शान्तिमय जीवन बिताना । समता नहीं मिथ्यात्व में रह, जुल्म सहने का जमाना ।। ....
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महावीर जयन्ती स्मारिका 16
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