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एक रोचक जिन-बिम्ब
• श्री शैलेन्द्रकुमार रस्तोगी २७ पुरातत्त्व संग्रहालय, केशर बाग,
लखनऊ।
राज्य संग्रहालय लखनऊ में जैन प्रतिमाओं का समस्त जैन मूर्तियाँ लेखयुक्त या लेखरहित वृहत्संग्रह है। यहाँ कुषाण, गुप्त, चन्देल, गाहड़- वर्गों में रखी जा सकती हैं। वाल प्रभति राजवंशों के शासन काल में बनायी गई जिन मूर्तियां ही नहीं हैं अपितु उत्तर मध्ययुगीन
प्रस्तुत प्रतिमा (जे-७) मथुरा से प्राप्त किसी दूसरे शब्दों में अाधुनिक अर्थात् १४, १५ एवं १६वीं
जिन की सिरहीन कायोत्सर्गमुद्रा विवस्त्र विग्रह है।
माना गया है। यह लाल चित्तीदार बलुए पाषाण शताब्दी में गढ़ी प्रतिमाएं भी सुरक्षित हैं। ये बाद की प्रतिमाएँ १६७२ ई० में भगवान् नेमीनाथ मंदिर,
(२-१'x\'xet") पर जिनकृत् है। माथु
रीय प्रतिमाओं पर सर्वत्र इस पाषाण का उपयोग चौक, लखनऊ द्वारा संग्रहालय को भेंट स्वरूप प्राप्त
किया गया है । सामने तरफ मूलनायक आजानुबाहु, हुई हैं। इस प्रकार अविच्छिन्न क्रम जिनमूर्तियों का
श्रीवत्स युक्त है। दोनों हथेलियों पर चक्र है ।। उपलब्ध है। यहाँ पर ऋषभ, महावीर, पाव,
बायी तरफ एक स्त्री है जो दायें हाथ में चॅवर जैसी नेमि, सुपार्श्व (मिट्टीपुर) सुव्रत के अलावा चन्द्रप्रभ, संभव, पद्मप्रभ, अजित, शीतल, मल्लि एवं वासुपूज्य
वस्तु लिये है हाथ ऊपर की ओर उठा है। बाँये की विरलता से प्राप्य प्रतिमाएं भी हैं। ये प्रतिमाएँ
हाथ में पुस्तक जैसी वस्तु लिये हैं। घुटनों से नीचा
कोटेसा पहने है । जैसा कि कुषाणकालीन प्रतिमाओं प्रायागपट्टों पर, स्वतन्त्र ध्यानस्थ या यक्ष-यक्षियों
पर पाते हैं। दायी तरफ पीछी एवं वस्त्र खण्ड विद्याधरों से परिवेष्टित हैं। ये उ० प्र० के मथुरा,
हाथ पर से लटकाए पुरुष मूर्ति है। इस प्रकार श्रावस्ती, खीरी, उन्नाव, महोबा के अलावा मइहर
वस्त्र को हाथ पर डाले अन्य कई प्रतिमाओं की एवं छतरपुर प्रभृति मध्यप्रदेश के स्थानों से संग्रहीत ।
चौकीयों पर कुषाण युग में बनाया गया है । हैं । एटा, इटावा, जालौन इस प्रकार से जिन बिम्बों का क्रमिक विकास सहज ही देखा जा सकता है। कहीं यह तो नहीं कि यक्ष-यक्षियों की धारा ये मतियां ध्यानस्थ बैठी तथा कायोत्सर्ग मुद्रा में का पर्व-रूप हो? क्योंकि आगे चलकर बायीं तरफ स्थिर है । बैठी एवं खड़ी स्थितियों की चौमुखियां यक्षियाँ बनाई गई । यहाँ पर भी बायी तरफ ही या सर्वतोभद्रिकाएं भी रोचक हैं । बैठी चौमुखी स्त्री प्राकृति पाते हैं और दायी तरफ पुरुष । (जे-२३६) जिस पर सं० १०८० है जिसमें चतुर्दिक भगवान् वर्द्धमान का अंकन है। इस पर श्री जिन- मूल प्रतिमा के दोनों चरणों के बीच में भी देवसूरी, विजयसिंह आचार्य, तथा निव ग्राम तथा लेख है । उसके नीचे एक इंच चौड़ी पट्टी है जिस नदि प्रभृति संज्ञायें उल्लेखनीय हैं ।
पर अभिलेख है। चरण चौकी के नीचे दो अर्द्ध
1. श्री वास्तव, वी० एन० मेरे पूर्ववर्ती इस सुझाव हेतु मैं आभारी हूं।
महावीर जयन्ती स्मारिका 76
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