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वृत्ताकार या कमल की पंखुड़ी डेढ़ इंच चौड़े तथा चौकी के ऊपर से स्तम्भ है जिसके ऊपर दो-दो चार इंच लम्बे हैं जिन पर लेख खुदा है। इन दोनों रेखाओं के बीच आमलक ऊपर शीर्ष का प्रारम्भ अर्द्ध वृत्तों: की आदि, मध्य एवं अन्त में त्रिभुजा- है। जिसे तीन पुष्पों से संवारा है। कहीं ये सम्यग कार गड्ढे हैं । यही क्रम बायी एवं दायी तरफ घूमा ज्ञान, दर्शन एवं आचरण के प्रतीक तो नहीं ? स्तम्भ है। बायीं ओर ३३"> ४३" नाप का खांचा के दायीं तरफ नीचे एक लम्बा वस्त्र पहने हाथ है। संभव है कालान्तर में इसे स्थापित करने हेतु जोड़े पुरुष खड़ा है । इसके बाल पीछे को है। काटा गया हो।
पुरुष अञ्जलि मुद्रा में खड़ा किन्तु हाथों के मध्य में खांचे के ऊपर खम्भे का अंकन है नीचे एक लम्बी सी अस्पष्ट वस्तु निकल कर घुटनों ऊपर खंडित ग्राहक है। दायीं तरफ पुष्पित शाल तक शरीर के बीच में दिखाई गई है। इस प्रकार वृक्ष की पत्तियों की टहनी है तथा टहनी के प्रारंभ जितनी भी स्त्री एवं पुरुषों को खचित किया गया पर ही खिला कुल है बायीं ओर नमस्कार मुद्रा में है सभी में पृथक-पृथक भावदर्शाये हैं जिसमें विस्मय लम्बा कोटधारी बालक या बौना तथा चूड़ियों एवं है, प्रेम है, करुणा है किन्तु अर्हत देव तो इन भावों हार से अलंकृत प्रसन्न मन स्त्री है । स्तम्भ आयाग- से परे हैं । काश ! इस प्रतिमा का शिर होता तो पट्टों पर भी पाते हैं। सिंह के अंकन में युक्त जे. २६ पता नहीं इस रचना को कितना मनोज्ञ बना देता। खम्भा है जिसकी परिक्रमा दम्पत्ति कर रहें हैं। मूलनायक के दायी पार्श्व के नीचे से ही अभिलेख यहाँ भी स्तम्भ पूजा का दृश्य है।
प्रारम्भ होता है, यह तीन पत्तियों में दो तरफ
उत्कीरिणत है। यह प्राकृत भाषा एवं ब्राह्मी लिपि मूलप्रतिमा के पृष्ठ तल पर बीचों बीच में शाल में है। यह सं० के कारण महत्त्वपूर्ण है। इससे पूर्व वृक्ष कामनोहारी अंकन है । जो कुषाण कालीन की कनिष्क सं० ५ की (जे-५) व सं० ७ की क्या भारत की कुछ ही ऐसी प्रतिमाएँ होगी जिनका (जे-६) हैं। प्राचीनता की दृष्टि से इस (जे-७) पिछला भाग इतना लुभावना बनाया गया हो। का तीसरा स्थान है इसको सं०६ में लिखा गया संग्रह में ऐसी विरल ही प्रतिमा हैं । शालवृक्ष का है। पीठिकोत्कीर्ण इह प्रस्तुत है : पुष्पित विलेखन है । पत्तियों की स्वाभाविकता इस बात का मूक साक्षी है कि आज से उन्नीस सौ वर्ष १. "सिध सं० ६ हि इदि १० हेमतस्य धित सुवपूर्व भी कलाकार का कितना ही सूक्ष्म प्रकृति का श्रीरीस्य वधु एक दलस्य । निरीक्षण था। मानों वृक्ष ही सामने झूम रहा हो। २. कोध्यातो गणतो प्रर्य तरक कुटुम्बिनिये। दायीं तरफ नीचे कोने में सदल कमल तथा उस पर ३. थानियातो कुलातोविरतो (नि (म) व] र्तन वृक्ष पुष्प है। बायीं तरफ एक स्त्री प्राकृति खड़ी भउहहयेदति ।। हैं । जो अपने दाये हाथ में सनालखिला कमल तथा तथा मूलनायक के दोनों चरणों के मध्य में :बायें हाथ विकच कमल पुष्प लिये हैं। यह हार (i) सुयषाचयां कुण्डल एवं भुजबन्ध एवं वस्त्रों से समलंकृत है। (i) सस्य शिशिना इसके बायी तरफ नीचे बालक या बौना नमस्कार अर्थात् सिद्ध सम्वत् ६ के हेमन्त ये एक दल करता, लम्बा कोट पहने खड़ा है। इसी के पास की वधु, कोध्यि, गण, आर्य तरक, थानियातो कुल
2. इसी प्रकार का वृक्ष जे-598 पर है, उसे शाल भजिका माना है ।
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महावारणमा
जयन्ती स्मारिका 76.
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