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मिटाने ।
.श्री रमेशचन्द्र जैन (बांझल)
इन्दौर।
मैं जन्म मिटाने पाया हूँ। इस अनन्त बलशील प्रात्म को, भगवान बनाने पाया हूँ। विषयों ने षडयन्त्र रचे काषायिक भावों में उलझाया। हित अहित न समझा इसने व्यसनों में चित्त लगाया ।।
हिम समान तन निरख निरख क्षणभंगुर पर इठलाया है। वैराग कथा को समय नहीं
विकथा में समय गमाया है ।। छोड़ सकल जग दन्द फन्द, नित आतम ध्याने आया हूँ।
मैं जन्म मिटाने आया हूँ। आपा पर को कर्त्ता पिछान पर को इष्ट अनिष्ट जान । कर राग द्वेष प्रतिक्षण क्षरण . अपने को सुखी दुःखी माना।।
मैं ज्ञानानन्दमयी चेतन यह भान हुया तब हर्षाया। पंचेन्द्रिय मन के विषय त्याग
जीवन अपूर्व मोड खाया ।। प्रष्ट कर्म रज उड़ा करके, परमात्म बनाने पाया हूँ।
मैं जन्म मिटाने पाया हूँ। मैं वीरागी के कुल का हूँ रहते सिद्ध अरहन्त जहाँ । जिनके मुखारविन्दों से बने कई भगवान् यहाँ ।। रत्नत्रय निधि को कर एकत्व, अक्षय पद पाने आया हूँ।
मैं जन्म मिटाने आया हूँ।
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महावीर जयन्ती स्मारिका 76.
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