________________
"Rajasthan is fabulou ly rich in tem - ples of Jaina faith. These are not only gems of architecture and sculptures, but also seat of worship and learning. These are also veritable mines of art and literature" :-Dr. Satyaprakash, Director of Archaeology and Museum Deptt. Raj. V.o. A. Sep., 1960p -28 1.
राजस्थान का इतिहास और जैन पुरातत्वं
श्री दिगम्बरदास जैन एडवोकेट, सहारनपुर
राजस्थान वीरों की भूमि है और जैन धर्म वीरों का धर्म प्रतः राजस्थान का इतिहास जितना प्राचीन है उतना ही प्राचीन है राजस्थान में जैन धर्म का अस्तित्व ।
प्राचीन काल में राजस्थान को मत्स्य देश कहते थे । पुराणों के अनुसार यहां वर्तमान कालचक्र के आदि तीर्थंकर भगवान् ऋषभदेव का विहार हुआ था इसी कारण यहां की पवित्र भूमि से उनकी प्राचीन मूर्तियां प्राप्त होती रहती है । बड़ेबड़े प्राचीन विशाल मंदिर पाये जाते हैं । कृषिकाल में ऋषभ के पुत्र भरत चक्रवर्ती ने अपने राज्य काल में अनेक जैन मंदिर मत्स्य देश में बनवाए। 20 वें तीर्थंकर मुनिसुव्रतनाथ के तीर्थकाल से भी प्राचीन मूर्ति भगवान् ऋषभदेव की उदयपुर से 40 मील दूर केसरियाजी नामक स्थान पर विराजमान है
1.
At the time of Mahavira a powerful monarch Udain was in Sindhu Sauvira. He was great devotee to Jainism and Constructed temples. Mahavira visited his Capital. The king joined Sraman Order. At that time Poohins & Jaisalmer and Cutch were included in Sindhu Sauvira--jain journal, Calcutta, April 1969; p.-199.
महावीर जयन्ती स्मारिका 70
Jain Education International
जो लंका में रावण के महल स्थित मंदिर में विराजमान थी । इसकी वीतरागता और मनोज्ञता से प्रभावित होकर श्री रामचन्द्रजी उसे अयोध्या के मंदिर में विराजमान करने के लिए अपने साथ लाए थे परन्तु मूर्ति केसरियाजी से आगे नहीं सरकी इसलिए उन्होंने इसे यहां ही विराजमान कर दी । वीर निर्वाण स्मारिका 1975 जयपुर के खण्ड 2 पृष्ठ 29 पर प्रकाशित पुरातत्व एवं संग्रहालय जोधपुर के अधीक्षक श्री विजयशंकर श्रीवास्तव की खोज से सिद्ध है कि स्वयं भगवान् महावीर का विहार भी राजस्थान में ( 600 ई० पू० ) हुआ था । इस समय राजस्थान का जैसलमेर तथा कच्छ, सिन्धु, सौवीर के भाग थे । सिंधु सौवीर के जैन राजा उदयन ने कई जैन मंदिर बनवाए थे। भ० महावीर ने इधर विहार किया था जिसके प्रभाव से वह जैन मुनि हो गया था । राजस्थान के सुप्रसिद्ध इतिहासकार एवं पुरातत्त्वज्ञ रायबहादुर पं० गौरीशंकर प्रोझा को अजमेर के निकट बड़ली ग्राम से एक शिलालेख मिला जिस पर वीर संवत् 84 अंकित है । यह शिलालेख याज भी अजमेर म्यूजियम में देखा जा सकता है। इससे प्रमाणित है कि वीर सम्वतु वीर निर्वाण के 84 वर्ष पश्चात् ही प्रर्थान् 433 ई० पू० तो निश्चितरूप से प्रचलित था। तीसरी शताब्दी ई० पू० राजस्थान मैं
For Private & Personal Use Only
2-69
www.jainelibrary.org