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था। । राणा के नाम पर जैन सेनापति के सह- लेख) । जीजा ने न केवल विपुल द्रव्य व्यय कर योग से कुम्भा ने दो मुस्लिम बादशाहों पर विजय जैन कीर्तिस्तम्भ का जीर्णोद्धार कराया अपितु प्राप्त करने के उपलक्ष में एक विशाल नौ मंजिला महाराणा कुम्भा की प्राज्ञा से सवा लाख बंदियों कीर्तिस्तम्भ बनवाया । उसके मंत्री जीजा ने को प्रायश्चित दिलाकर मुक्त कराया । उसने 18 उसके सामने एक दूसरा विशाल जैन कीर्तिस्तम्भ मंदिरों के शास्त्र भण्डारों में 18 करोड़ जैन ग्रंथ कुम्भा की आज्ञा से बनवाया । कुम्भा का प्रधान स्थापित किए। (जैन सिद्धान्त भास्कर जनवरी मंत्री धरणाशाह भी जैन था। इसने जब जैन 1947 पृ० 137) कुम्भा के पुत्र रायमल ने भी मंदिर बनवाने के लिए राणा से भूमि मांगी तो जैन धर्म की बड़ी प्रभावना की। महाराणा ने प्रसन्नता से कहा कि भूमि तो जितनी और जहां चाहे ले लो किन्तु मंदिर इतना अनुपम ।
राणा सांगा ने मुगल सम्राट वाबर से घमासान और आकर्षक हो कि संसार का सुन्दर से सुन्दर युद्ध किया था और जैनाचार्य धर्मसूरि के उपदेश और विशाल भवन भी उसे देख कर शरमा जाय । से शिकार, शराब, मांस-भक्षण आदि का त्याग कर द्रव्य की भी चिन्ता मत करना। धरणाशाह ने
दिया था। स्वयं बाबर ने अपनी 'तुजके बाबरी' में अरावली की घाटी में 48400 वर्ग फीट भमि राणा सांगा की वीरता और देश भक्ति की बडी पर दिन रात 24 घण्टे (सम्वत् 1433 से प्रशंसा की है । इन राणा के सेनापति तोलाशाह
जैन थे। संवत् 1498 तक) निरन्तर 65 वर्ष । तक अत्यन्त प्रवीण शिल्पियों की छेनी
महाराणा रत्नसिंह का सेनापति उक्त चलने पर दो पाने रोज राज तथा एक पाना तोलाशाह का पुत्र कर्मशाह था जिसने तत्कालीन रोज मजदूर को देने पर भी 99 लाख स्वर्ण मुद्रा गुजरात सम्राट बहादुरशाह की आज्ञा लेकर 1530 अर्थात् 3 अरब 96 करोड़ रुपयों की लागत से ई० में करोड़ों रुपयों की लागत से शत्रुञ्जय तीर्थ प्रथम तीर्थंकर ऋषभदेव, 22 वें नेमिनाथ, 23 वें का जीर्णोद्धार कराया था तथा न. ऋषभदेव की पार्श्वनाथ और सूर्यवंशी महाराणा कुम्भा के इष्ट मूर्ति प्रतिष्ठापित की थी। सूर्य का मंदिर बनवाकर इस स्थान का नाम राणकपुर रखा । ऋषभदेव का मंदिर 3 मंजिला राणा रतनसिंह की मृत्यु के बाद विक्रमादित्य चौमुखा अत्यन्त दर्शनीय तथा अपनी कला एवं उत्तराधिकारी हुवा जो अयोग्य था । । उदयसिंह मनोज्ञ कलापूर्ण मूर्तियों के लिए विशेषतः पार्श्व- उस समय नाबालिग था इसलिए सरदारों ने नाय की 1000 फणों वाली मूर्ति के उदयसिंह के बालिग होने तक उसके चाचा बनवीर लिए विश्व विश्रत है। (धर्मयुग : 17 सित) को राजा बना दिया । यह बड़ा ग्रन्यायी था। 1967 पृष्ठ 14-15 पर अक्षयकुमार जैन का इसने विक्रमादित्य को कत्ल कर दिया और
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मुनि श्री जयन्तविजयजी : जैन तीर्थ (HOLL ABU) (भावनगर)
हिन्दुस्थान टाइम्स देहली दि० 3-1-68 पृष्ठ 5। 3. (i) सन्मति सन्देश : अप्रेल 1963 पृष्ट 18 (ii) जैन सिद्धांत भास्कर वर्ष 13 पृष्ठ 128 ।
राजस्थान म्यूजियम, अजमेर की वार्षिक रिपोर्ट 1921-22 नं 3 । राजपूताने के जैन वीर पृष्ठ 69 ।
महावीर जयन्ती स्मारिका 76
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