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१५. श्रमणों को सत्कृत करने वाले ने चारों
दिशाओं से आने वाले ज्ञानियों, तपस्वियों, ऋषियों, सन्धियों का पर्वतपृष्ठ में अर्हत निषद्या (विश्रामावास) के समीप अनेक योजनों से लाई भली प्रकार खडी की गई शिलाओं द्वारा
वाद्यपूर्ण शान्तिकालीन तूर्य उत्पन्न किया । क्षेमराज, वृद्धराज, भिक्षुराज, धर्मराज वह वह कल्याणों को देखते, सुनते और अनुभव
करते हुए, १७. गुण विशेष निपुण, समस्त पाषण्ड का पूजक,
अनेक देवायतनों का निर्माता, अद्वितीय सैन्यबलवाला, राजचक्र धारण करने वाला राजर्षि वसुकुलोत्पन्न, महाविजयी राजा श्री खारवेल
१६. चौराहों में, अन्तःभागों में वैदूर्य युक्त ७५ लाख
मुद्राओं द्वारा स्तम्भ स्थापित किया । प्रमुख कलाओं से समन्वित, चतुषष्टि प्रकार
बीमार मौत
.श्री अशोक जैन, निमोर, रायपुर जिंदगी एक मुझे, ख्वाब की सी लगती है। तिस पर भी तकदीर अपनी, एक गुजरे हुये दीदार सी लगती है ।। मुश्किल दर मुश्किल, छिलके हों जैसे प्याज के ।
चैन की नींद आज, ख्वाब को सी लगती है। छिलके पर छिलके, उतरते जाते हैं दिल के । फिर भी प्रात्मा मुझको अपनी, एक ढहती हुई दीवार सी लगती है ।। प्याज के अन्त में, पाया हो जैसे महाशून्य एक । याद मुझको स्वयं अपनी, एक जलते हुये अंगार सी लगती है ।। बन्द हैं सांसे और, धड़कने खामोश दिल की। मौत भी प्राज मुझे, बीमार की सी लगती है ।। रात हर जश्न की, होती है सुबह कतल यहां । बात खुद मुझको मेरी, फरियाद की सी लगती है ॥ मायूस है जिन्दगी, ना उम्मीद हैं उम्मीदें । चाह भी प्राज मुझे, गुनाह की सी लगती है ।
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महावीर जयन्ती स्मारिका 76
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