Book Title: Mahavira Jayanti Smarika 1976
Author(s): Bhanvarlal Polyaka
Publisher: Rajasthan Jain Sabha Jaipur
View full book text
________________
५. गंधव-वेद-बुधो दप-नत-गीत-वादित-संदसनाहि ११. ..........."पुवं राज-निवेसितं पीडं गदभ
उसव-समाज-कारापनाहि च कीडापयति नगरि नंगलेन कासयति (1) जन [प] द-भावनं च (1) तथा चवुथे वसे विजाधराधिवासं तेरस-वस-सत-कतं भि [] दति त्त्रमिर-दह अहतपुर्व कलिंग (?)-पुव-राज-[निवेसितं] .... (?)-संघातं (1) बारसमे च वसे.......... ........... विवध-म [कु] ट ............."च [सह] सेहि वितासयति उतरापध-राजानो.... निखित-छत (?)
१२. म [1] गधानं च विपुलं भयं जनेतो हथसं ६. भिंगारे [हि] त-रतन-सपतेये सव-रठिक
गंगाय पाययति (1) म [1] गध [] च भोजके पादे बंदापयति (।) पंचमे च दानी
राजानं बहसतिमितं पादे वंदापयति (1) वसे नंदराज-तिवससत-प्रो [घा] टितं
नंदराज-नीतं च का लि] 'ग-जिनं संनिवेस... तनसुलिय-वाटा पगाडि नगरं पवेस [य] ति
.."अंग-मगध-वसु च नयति (1) सो................... (1) [अ] भिसितो च
१३. [क] तु [] जठर-[लखिल-[गोपु] राणि [छठे वसे] राजसेयं संदंसयंतो सवकर-वरण
सिहराणि निवेसयति सत-विसिकनं [प]
रिहारेहि (1) अभुतमछरियं च हथी-निवास ७. अनुगह-अनेकानि सत-सहसानि विसजति पोर
[ स ] परिहर-हय-हथि-रतन-[ मानिकं ] जानपदं (1) सतमं च वसं [पसा] सतो
पंडराजा....... ... ... [मु] त-मनि-रतनानि वजिरधर स मतुक पद ................ [क]
प्राहरापयति इध सत [सहसानि] म............ (1) अठमे च वसे महता सेन [1] ........... गोरधगिरि
१४. ....... सिनो वसीकरोति (1) तेरसमे च
वसे सुपवत-विजय-चके कुमारीपवते अरहते ८. घातापयिता राजगहं उपपीडपयति (1) एतिन
(हि) पखिन-सं [सि] तेहि कायनिसीदियाय (1) च कंमपदान-स [] नादेन..........."सेन यापूजावकेहि राजमितिनि चिन-वतानि वास वाहने विपमुचितु मधुरं अपयातो यवनरा [7] [सि] तानि पूजानुरत-उवा [सग-खा]
[ज] [डिमित ? ] ......"यछति ... पलव... रवेल सिरिना जीवदेह [सयि] का परि६. कपरुखे हय-गज-रथ-सह यति सव-धरावास....
खाता (1) ..."सव-गहणं च कारयितु ब्रह्मणानं ज [य]- १५. ..........."सकत-समरण सुविहितानं च सवपरिहारं ददाति (1) अरहत.....नवमे च दिसानं अ [नि] नं [?] तपसि-इ वसे] .... ........
[सि] न संधियनं अरहतनिसीदिया-समीपे
पाभारे समुथापिताहि अनेकयोजना-हिताहि.. १०. ....."महाविजय-पासादं कारयति उठतिसाय
......."सिलाहि...... सत-सहसेहि (।) दसमे च वसे दंड-संधीसा [भमयो] (?) भरधवस-पठा [?] नं
१६. .... ." चतरे च वेडुरिय-गभे थंभे पतिठापयति मह [1] जयनं (?) ....." कारापयति (1)
पानतरीय-सत-सहसेहि (?) मु [खि य-कल[एकादसमे च वसे] ..........."प (r] यातानं वोछिनं च चोय [ठि] संग संतिक [] च म [नि]-रतनानि उपलभते (1)
तुरिय उपादयति (1) खेम-राजा स वद-राजा
2-60
महावीर जयन्ती स्मारिका 76
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 281 282 283 284 285 286 287 288 289 290 291 292 293 294 295 296 297 298 299 300 301 302 303 304 305 306 307 308 309 310 311 312 313 314 315 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358 359 360 361 362 363 364 365 366 367 368 369 370 371 372 373 374 375 376 377 378 379 380 381 382 383 384 385 386 387 388 389 390 391 392