________________
खारवेल का हाथीगुम्फा अभिलेख
श्री नीरज जैन, एम. ए. श्री डा० कन्हैयालाल अग्रवाल वाणिज्य महाविद्यालय, सतना
दो हजार वर्ष प्राचीन हाथीगुम्फा अभिलेख नमो सव-सिधानं (1) ऐरेण महाराजेन खण्डगिरि-उदयगिरि पर्वत के दक्षिण की अोर लाल महामेघवाहनेन चेति-राज व [] स-वद्यनेन बलुवे पत्थर की एक चौड़ी प्राकृतिक गुहा में पसथ-सुभ-लखनेन . चतुरंतलुठ [ण]-गुणउत्कीर्ण है। इसमें सत्रह पंक्तियां हैं। प्रस्तुत उपितेन कलिंगाधिपतिना सिरि-खारवेलेन । अभिलेख पहली बार स्टर्लिंग द्वारा १८२० ई० में प्रकाश में पाया। तब से १९२७ ई. तक इसके
२. [पं] दरस-वसानि सीरि-[कडार]-सरीरसंशोधित पाठ समय-समय पर प्रकाशित होते रहे बता कीडिका (1) ततो लेख-रूप-गणनाइस प्रकार हाथीगुम्फा अभिलेख के सम्पूर्ण पाठ को
ववहार-विधि-विसारदेन सव-विजावदातेन बार-बार पढ़े जाने की कहानी अत्यन्त रोचक है ।
नव-वसानि योवरज [प] सासितं (1) पुरातत्ववेत्ताओं को अभिलेख का अर्थ समझने में
संपुण-चतुवीसति-वसो तदानि वधमानसेसयोलगभग एक शती (१८२० ई० से १९१७ ई.)
वेनाभिविजयो ततिये । का दीर्घकाल लगा। इस अभिलेख में कलिंग चक्रवर्ती जैन सम्राट् खारवेल के व्यक्तित्व और
३. कलिंग-राज-वसे (स)-पुरिस-युगे महाराजाभिशासनकाल की घटनाओं का विस्तृत परिचय दिया
सेचनं पापुनाति (1) अभिसितन च पधमे गया है । इसकी एक प्रमुख विशेषता यह है कि
बसे वात-विहत-गोपुर-पाकोर-निवेसनं पटिइसमें खारवेल के शासन के समय में प्रतिवर्ष की
संखारयति कलिंगनगरि खिबी [२] (1) घटनामों का, उसकी विजय यात्राओं और प्रजाहित
सितल-तडाग-पाडियो च बंधापयति सबूयान-प के लिये किये गये कार्यों का उल्लेख किया गया है [टि] संथपनं च। जिसका वर्णन हम वीर निर्वाण स्मारिका, १९७५ ई० में प्रकाशित अपने 'हाथीगुम्फा अभिलेख की
४. कारयति पनसि (ति) साहि सत-सहसेहि विषयवस्तु' शीर्षक लेख में कर चुके हैं यहां प्रस्तुत
पकतियो च रंजयति (1) दुतिये च बसे है अभिलेख का मूलपाठ, संस्कृतच्छाया और उसका
अचितयिता सातकनि पछिम-दिसं हय-गजहिन्दी अनुवाद ।
नर-रध-बहुलं दंडं पठापयति (1) कन्हबेंगामूलपाठ
गताय च सेनाय वितासिति असिकनगरं (1) १. [श्रीवत्स] [स्वस्तिक] नमो अरहंतानं (1 ततिये पुन वसे । १. सरकार, सेलेक्ट इन्स्क्रिप्शन्स (द्वितीय संस्करण) २१४-२१ पर आधारित । महावीर जयन्ती म्मारिका 76
2-59
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org