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और रास्ते में बहुत दूर से दिखाई देने लगती है। सादा और सज्जारहित है । परन्तु शीर्षभाग में बीचों गुफा द्वार तक पहुँचने के लिये किसी सुगम मार्ग बीच एक छोटी तीर्थंकर प्रतिमा इस पर अंकित है। का निर्माण अभी नहीं हुआ है । चढ़ाई अधिक नहीं है किन्तु दुर्गम अवश्य है । बीस मिनट में वहाँ पहुँचा गर्भ गृह जा सकता है । गुफा के बिल्कुल बगल में चट्टान को द्वार से प्रवेश करते ही हम इस गुफा के गर्भाभीतर तक कोलकर एक जलाशय का निर्माण उसी लय में पहुँचते हैं । यह एक बीस फुट लम्बा तथा काल में किया गया है । बरसात में ऊपर से आने सोलह फुट चौड़ा मण्डप है जिसे बीचों बीच दो वाला पानी इसमें एकत्र हो जाता है और दूसरी खम्भों का आधार दिया गया है । बाहर से भीतर बरसात तक आने जाने वालों के निस्तार और पीने तक हर जगह गुफा की छत सात से लेकर आट फुट के काम में आता है । पानी ठण्डा और स्वच्छ था। तक ऊंची बनाई गई है। दोनों खम्भों से लगे हुए जलाशय से और आगे जाने पर एक और गुफा बनी यक्ष और यक्षिणी के पासन हैं। दाहिनी ओर का है जिसमें कोई मूर्ति या सज्जा अभिप्राय अंकित खम्भा सादा है और उसके सहारे तीन फुट ऊंची नहीं है। प्रवेशद्वार के बाद गुफा का मुख्य भाग बैठी हुई यक्ष प्रतिमा स्थित है । बाईं तरफ के खम्भे लगभग दो फुट गहरा है जिसमें चार-पांच महीने को प्रामवृक्ष के रूप में सुरुचिपूर्वक अंकित किया पानी भरा रहता है । संभवतः इसीलिये इसका गया है । वृक्ष पर पत्त, फलों के गुच्छे और अनेक स्थानीय नाम सीता नहानी पड़ गया है। सीता बड़े-बड़े ग्राम लटकते दिखाये गये हैं । दोनों ओर दो नहानी से थोड़ी दूर जाने पर पर्वत की मोड़ पर मयूर भी इस वृक्ष पर अंकित हैं । वृक्ष के नीचे तीन एक और सादी शैल दरी बनी हुई है। इसके द्वार फुट अवगाहना की शासनदेवी अम्बिका की अत्यन्त पर उत्कीर्ण सरस्वती की छोटी प्रतिमा से ज्ञात सुन्दर प्रतिमा अंकित की गई है । अर्द्ध पर्यंक प्रासन होता है कि यह कोई विद्या-विहार रहा होगा । में बैठी हुई देवी की बाईं जंघा पर एक बालक बैठा संभवतः साधुओं के पठन-पाठन के लिये इसका दिखाया गया है । दाहिनी जंघा व दाहिना हाथ निर्माण हुआ होगा।
पूरी तरह खण्डित है । यक्ष और यक्षिणी दोनों दो
भुजाओं वाले बनाये गये हैं। देवी की मुखाकृति मण्डप
भव्य और सुन्दर है । केश सज्जा के कारण उसका मुख्य गुफा के प्रांगण में प्रवेश करते ही दाहिनी लालित्य बढ़ गया है । शरीर पर कुण्डल, बाजूबन्द, प्रोर एक शैलोत्कीर्ण मानस्तम्भ था जो नष्ट हो हार, मोहनमाला, नूपुर आदि प्राभूषण यथास्थान गया है और अब उसका केवल पाँच फुट भाग शेष अंकित हैं । अनुपात, शरीर सौष्ठव और सज्जा को रह गया है। प्रवेश का मण्डप लगभग बीस फुट मिलाकर अम्बिका की यह मूर्ति अत्यन्त सुन्दर बन लम्बा और सात फुट चौड़ा है । पौने दो फुट व्यास पड़ी है। कला की दृष्टि से इसका निर्माण काल के चौकोर दो खम्भों से इस मण्डप को तीन भागों 9 वीं-10 वीं शताब्दी ज्ञात होता है। में विभक्त कर दिया गया है। मण्डप के दाहिनी .
ओर एक बड़ा किन्तु एकदम सादा शिलागृह है मूलनायक व अन्य प्रतिमाएं जिसका उपयोग साधुओं के रहने के लिये होता रहा अम्बिका की प्रतिमा को प्रमुख शासनदेवी के होगा । मण्डप के बीचों बीच तीन फुट चौड़ा और रूप में स्थापित पाकर यह अनुमान करना ठीक साढ़े पांच फुट ऊंचा प्रवेशद्वार है। यह द्वार अत्यन्त होगा कि यह गुफा बाइसवें तीर्थंकर नेमिनाथ को
महावीर जयन्ती स्मारिका 76
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