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प्रांगण में यहाँ आस पास से एकत्र की गई अनेक मुश्किल से दस वर्ष की आयु के होंगे । अर्ध दिगम्बर खण्डित-अखिण्डत प्राचीन मूर्तियों का संकलन है जिनके अलमस्त और ऐसे निरीह थे कि पेट कह रहा था लिये एक संग्रहालय बनाने की योजना पर भी कि भाजी भाखरी (ज्वार की रोटी और शाक) से विचार हो रहा है । इस संग्रह में एक कायोत्सर्ग रोज का परिचय नहीं है । मुख और ग्रीवा गवाह आसन लगभग दो फुट ऊंची सर्वतोभद्रिका दिगम्बर थी कि शायद महीनों से जल का स्पर्श उसने नहीं जैन प्रतिमा है। इसमें एक ओर आदिनाथ और किया और छोटे-छोटे पांव के तलुवे की बड़ी-बड़ी एक ओर पार्श्वनाथ को स्पष्ट पहचाना जा सकता दरारें घोषित कर रही थी कि जूते-चप्पल उनके है। शेष दो प्रतिमाओं पर चिन्ह का अभाव है। लिये सर्वथा अनजाना और अनावश्यक परिग्रह है। परम्परा के अनुसार वे चन्द्रप्रभु और महावीर की घाटी की दुर्गम चट्टानों पर वे जिस प्रकार कूदते, प्रतिमायें होनी चाहिये । इसी संकलन में एक दो फांदते, किलकारते चलते थे उससे डार्विन महोदय ऐसे शिल्पावशेष मेरे देखने में आये जिनकी पहचान की स्थापना स्वतः प्रमाणित होती जाती थी। जैन शासनदेवी चक्रेश्वरी और पद्मावती के रूप में उनका अनुसरण करने के लिये हमें बार-बार उनकी की जा सकती है। इन सभी प्रमाणों के आधार पर गति पर अंकुश लगाना पड़ता था। पचास मिनट यह निष्कर्ष निकलता है कि इस क्षेत्र में मध्यकाल में सपरिश्रम आयास के बाद ही हमारे मार्गदर्शक ने जैन स्थापत्य का निर्माण कई जगह पर हुअा है हमें पीतलखोरा की गुफाओं के सामने खड़ा कर साथ ही उस काल में यहाँ का वातावरण धार्मिक दिया । सारा मार्ग अपनी दुर्गमता के बावजूद नैससहिष्णुता से युक्त रहा है । महादेव मंदिर के पास गिक सुषमा से भरा हुआ है तथा रंग-बिरंगे पत्थरों एक छोटे मध्यकालीन मंदिर का अधिष्ठान और से समृद्ध है । पत्थर रूप में परिवर्तित तरह-तरह गर्भगृह के अवशेष देखने को मिले जो निश्चित ही का काष्ठ, जिसे संभवत ‘फोसिल' कहते हैं इस जैन शिल्पावशेष हैं।
पहाड़ पर बहुतायत से उपलब्ध है । पीतलखोरा
की गुफायें आमने-सामने की पहाड़ियों में उकेरी पीतलखोरा की परिक्रमा
हुई हैं । एक ओर तीन विशाल और दूसरी ओर यहाँ जिस पहाड़ी में जैन गुफा होने का वर्णन चार छोटी । इन गुफाओं का विशेष वर्णन यहाँ किया गया है वह पहाड़ी अपने घुघराले विस्तार
अभीष्ट नहीं है। जैन गुफा से इनकी दरी सातके साथ पूर्व की ओर बहुत दूर तक फैलती चली पाठ किलोमीटर से अधिक नहीं होगी परन्तु चढ़ाई गई है। इसी पहाड़ी में दूसरे किनारे पर पीतलखोरा पूरी करके दूसरे तरफ उतरते ही जलगांव जिले की की प्रसिद्ध गुप्तकालीन बौद्ध गुफायें उकेरी गई हैं। सीमा समाप्त हो जाती है और पीतलखोरा की इन गुफाओं को देखने का भी हमारा मन था। गुफायें औरंगाबाद जिले में आती हैं। पाटनादेवी में उपस्थित लोगों ने पर्वत की दुर्गम चढ़ाई, गुफाओं की अनमानरहित दरी, समय की नामा और मार्गदर्शक के अभाव की जो कष्टकर चर्चा जैन गुफा को स्थानीय लोग 'नागार्जुन गुफा' की उससे हमारा उत्साह समाप्त होने जा ही रहा के नाम से जानते हैं । संभवतः नग्न जैन गुफा कहे था कि जंगलिया नाम का एक समर्थ और उत्साही जाने पर यह नागार्जुन नाम पड़ गया होगा। इस एक रुपये के पारिश्रमिक पर हमारा मार्गदर्शक नाम की और कोई व्युत्पत्ति समझ में नहीं आती। बनने के लिये तैयार हो गया। ये मार्गदर्शक महोदय गुफा पर्वत की ऊंचाई के लगभग बीच में स्थित है
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महावीर जयन्ती स्मारिका 76
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