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नागार्जुन की जैनगुफा
-श्री नीरज जैन, एम० ए०
अलगांव जिले में चालीस गांव से दक्षिण- नागर शैली में बना हुआ है। उसके अन्तराल में पश्चिम की अोर लगभग दस किलोमीटर पर एक विक्रम संवत् 1029 का एक चौबीस पंक्तियों का प्राचीन शिव मंदिर है। मंदिर के पीछे पहाड़ियों शिलालेख लगा हुआ है। मंदिर के मण्डप, अन्तराल का सिलसिला प्रारम्भ होता है। पहाड़ी चढ़ते और गर्भगृह यद्यपि पूरी तरह सुरक्षित हैं परन्तु समय बीचों बीच एक प्राचीन जैन गुफा मंदिर है शिखर और तोरण नष्ट हो चुके हैं। जीर्णोद्वार के जिसमें अनेक तीर्थंकर प्रतिमायें उत्कीर्ण हैं ।यह गुफा समय मंदिर के पूरे खण्डहर पर चूना-सीमेण्ट से चालीसगांव जिले की एकमात्र जैनगुफा है। भावा- छत बना दी गई है । वाह्यभित्तियों पर देवता गमन की असुविधा के कारण तथा वांछित प्रचार मूर्तियां बनाई गई थीं जो कालदोष से पत्थर के के अभाव में यह गुफा अभी तक विशेष प्रकाश में नैसर्गिक क्षरण के कारण नष्टप्राय हो गई हैं, नहीं आ सकी, किन्तु पुरातत्व विभाग का संरक्षण फिर भी उन मूर्तियों को पहचाना जा सकता है। इसे प्राप्त हो गया है । इस लेख में इस गुफा का इसी परिक्रमा में उत्तर की ओर एक तीर्थकर संक्षिप्त विवरण प्रस्तुत किया जा रहा है। केमरा प्रतिमा तथा जैन शासनदेवी अम्बिका का अंकन साथ नहीं होने के कारण चित्रांकन का कार्य शेष बहुत स्पष्ट है । रह गया है तथा नापने का फीता रास्ते में छूट .
जैन अवशेष जाने के कारण शिल्पावशेषों की जो माप आगे दी। जा रही है वह दृष्टि के अनुमान पर आधारित है। यहाँ यह उल्लेख करना अप्रासंगिक न होगा
कि समीपस्थ पाटनादेवी के क्षेत्र में जो प्राचीन सामान्य सर्वेक्षण
प्रतिमायें प्राप्त की गई हैं उनमें भी जैन शिल्पावशेष चालीसगांव से दस किलोमीटर दूर पहाड़ी पाये गये हैं । पाटनादेवी का मंदिर पर्वत की तलहटी के नीचे एक क्षेत्र 10 वीं से 12 वीं शताब्दी तक में एक छोटी नदी के किनारे एक ऊँचे अधिष्ठान के अनेक शिल्पावशेषों से भरा हुआ है । पाटनादेवी पर स्थित है। यह भी मध्यकाल की रचना है। का प्राचीन मंदिर धीरे-धीरे एक रमणीक और मंदिर में एक लम्बे बरामदे के साथ तीन स्वतन्त्र प्रसिद्ध हिन्दू तीर्थ के रूप में विकसित हो रहा है। गर्भगृह हैं । पहले गर्भगृह में सिंह पर आसीन दस चालीसगांव से इस मंदिर तक प्रतिदिन बसों का फुट ऊँची, अठारह भुजारों वाली दुर्गा की प्रतिमा पावागमन होता रहता है। इसी मंदिर मार्ग पर है जिसे चण्डी के नाम से पूजा जाता है। बीच के दस किलोमीटर चलने के बाद दाहिनी ओर मुड़कर गर्भालय में शंख, चक्र, गदा और पद्म से युक्त विष्णु एक साधारण पथ से हम लोग महादेव मंदिर के की प्रतिमा विराजमान है तथा तीसरा गर्भालय प्रांगण में पहुँच गये। मंदिर 10 वीं शताब्दी का तीन देवियों के अधिकार में है । इसी मंदिर के
महावीर जयन्ती स्मारिका 76
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