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.श्री मंगल जैन 'प्रेमी
जबलपुर।
मैं मानव हूँ, रेखाचित्र सा, पर रेखाचित्र बोलता नहीं है । मैं बोलता हूँ। सोचने और समझने की अनुभूति पर, अपना पूर्ण अधिकार रखता हूँ । ढोंगीपन की काल्पनिक उड़ानें देखकर--- मैं डोलता नहीं हूँ ।। पर रेखाचित्र मेंरेखाओं के माध्यम सेकलाकार हृदय उद्गार रखता है। और मैं ? कविता के माध्यम से, समस्त मानव की अनुभूति-- उजागर करता हूं। मैं कवि हैजलते अंगारों का, मुझे गीत नहीं पाता, रंगीले शृगारों काजो कि रेखाचित्र की व्याख्या है।
पर मुझेरेखाचित्र की फिकर नहींफिकर तो पाने वाली पीढ़ी की है। रेखाचित्र तो खून के मैदान में भी स्वप्न देखता है बहारों कालेकिन मैं, अजीब हूँ, पर दिल का अमीर हूँ। मुझे शृंगार नहीं आता, पर शृंगार को ढोने वाले पर रोना सहज ही आ जाता है । मुझे डोली की दुल्हन की सिसकियाँ, द्रवित नहीं कर सकतीं, मुझे तो तरस आता हैदुल्हन का वजन ढोने वाले कहारों का ।। सोचो मैं कौन हूँ ? मैं भी एक इंसान हूँ। लेकिनशृगारों के गीत गाने वाला नहीं, गाने वाला हूँ गीत जलते अंगारों का।
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महावीर जयन्ती स्मारिका 76
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