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जैन धर्म और उनके अनुयायियों ने दक्षिण रुत्थान हो जाने तथा राजनैतिक कारणों से जैनों भारतीय समाज को कितना प्रभावित किया है इस द्वारा भारी संख्या में धर्म परिवर्तन कर लेने पर का अनुमान इस बात से लगाया जा सकता है कि भी उन धर्म परिवर्तित हिन्दुओं ने अपने जैन रीतिआज भी दक्षिण भारत में वर्णमाला सीखने के रिवाजों को सुरक्षित रक्खा। उनके प्राचार वैसे पहले बालकों को 'श्रीगणेशाय नमः' के स्थान पर ही बने रहे। तमिल शब्द "शैवम्” जिससे सामान्य'योनामासीधं' (प्रोम् नमः सिद्ध भ्यः) सिखाया तया शिव भक्त का बोध होता है तमिलनाडु में जाता है । डा० ए० एस० अल्तेकर के अनुसार यह विशुद्ध शाकाहारी के लिये प्रयुक्त होता है और इस बात का सूचक है कि राष्ट्रकूट काल में जैन वहां के ब्राह्मण पक्के शाकाहारी होते हैं जो स्पष्टगुरुत्रों ने देश की शिक्षा में पूर्ण रूप से भाग लेकर तया जैन धर्म का प्रभाव है । तमिल की जैनकृतियों इतनी अधिक छाप जमाई थी कि दक्षिण में जैन तिरुककरल' और 'नालडियार' में सदाचरण पर धर्म का संकोच हो जाने के बाद भी वैदिक सम्प्रदाय दिये गये बल को लक्ष्य कर डा० जी० यू० पोप के लोग अपने बालकों को उक्त जैन नमस्कार जैसे पाश्चात्य विद्वानों ने उनके रचनाकारों को ही वाक्य सिखाते ही रहे। प्रो० ए० चक्रवर्ती की नहीं उस समाज को भी जिसके लिये उनकी पुस्तक "जैन लिट्रेचर इन तमिल" के अनुसार प्राज रचना हुई, आध्यात्मिक दृष्टि से समुन्नत, महान भी तमिल समाज के उच्च वर्गों में जैन संस्कार सदाचारी और अन्य भारतीय समाज से अग्रणी विद्यमान हैं। दक्षिण में शैव धर्म का पुन- माना है ।
क्षणिकायें
• श्री सुरेश सरल, जबलपुर
भगवान महावीर का समाजवाद, जहाँ प्राणी स्वछंद होकर जीते थे, शेर और गाय एक साथ पानी पीते थे। चलो ! हम भी उगायें समाजवाद के वृक्ष सरीखे। जिनकी छाया में प्रादमी प्रादमी के साथ बैठना सीखे।
कोरे कागजों पर लिख दिया महावीर, बे-जान माइकों से उचारा-महावीर । बस जयंती मन गई। समाज की इमेज बन गई ?
महावीर का नाम सौ बार उचारने के बदले महावीर प्रणीत एकाध प्राचरण जीवन में उतार लें भव-परभव सुधार लें।
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महावीर जयन्ती स्मारिका 76 Jain Education International
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