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विनायक यंत्र सं० 1794 माघ सुदी 13 मूलसंधे जिसमें माघ सुदी नवमी सं० 1349 उत्कीर्ण हुआ मंडलाचार्य श्री अनन्तकीर्तिः तदाम्नाए पाण्डया गोत्रे पढ़ा जाता है। सहाय दामसी सिंहजी ने प्रतिष्ठापितें" । शेष प्रतिमाएं अत्याधुनिक हैं।
अन्तिम (क्रमशः पांचवीं) वेदिका में छह
प्रतिमाएं और एक यंत्र है, इनमें से भ० महावीर इसके बाद दूसरी वेदिका में सात प्रतिमाएं हैं स्वामी की शुभ्र पाषाण की पद्मासन प्रतिमा अति जिनमें से भ० पार्श्वनाथ की धातु की प्रतिमा प्राचीन लगती है । भ० शीतलनाथ की शुभ्र अत्यधिक प्राचीन है जिस पर निम्न लेख उत्कीर्ण पाषाण की पद्मासन प्रतिमा वैसाख सुदी 3 सं० है “सं० 1524 वर्षे चैत्र सुदी एकम बुधे श्री काष्ठा 1548 की है जिसमें भट्टारक जिनचन्दजी का नाम संघे भट्टारक श्री कमलकीर्ति देवास्तत्पश्री शुभचंद उत्कीर्ण है। एक प्रतिमा सं० 1477 की है दो देवास्तदाम्नाए अग्रोतकान्वएभ० पार्श्वनाथ की प्रतिमाए वी० नि० सं० 2024 और 2026 दूसरी प्रतिमाए सं० 1545 और 1682 की है। की हैं। एक चन्द्रप्रभ की प्रतिमा फागुन सुदी नवमी सं० 1624 में प्रतिष्ठित हुई थी उसमें सुमतिकीर्ति
शाहदरा में पहले बड़े धार्मिक और निष्ठाभट्टारक का नामोल्लेख है। एक भ० पार्श्वनाथ की वान श्रावक रहा करते थे जो जिनवाणी के परम प्रतिमा सं0 1862 की भी है।
भक्त थे। यहां के शास्त्र भंडार में लगभग सौ
हस्तलिखित ग्रथों का संग्रह विद्यमान है। यहां मूल वेदी से बायें तरफ वाली पहली (क्रमशः प्राषाढ़ सुदी पंचमी सं० 1942 को पं० बंशीधरजी चौथी) वेदिका में एक यंत्र और छह प्रतिमाए हैं ने 'प्रादित्यकार कथा' लिखी थी जो पंचायती जो प्रायः अत्याधुनिक है । केवल एक छह इंच ऊंची मन्दिर मस्जिद खजूर दिल्ली के शास्त्र भंडार में पद्मासन धातु की भ० नेमिनाथ की प्रतिमा है क्रमांक अ69 ख पर विद्यमान है ।
महावीर ने कहा
अन्नं भासइ अन्नं करेई त्ति मुसावरणो । कहना कुछ और करना कुछ यही झूठ है ।
सव्वे कामा वुहावहा । सब प्रकार के काम भोग दुःखदाई होते हैं ।
इच्छा हुमागाससमा अरणंतिया । इच्छाएं आकाश के समान अनन्त होती हैं।
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महावीर जयन्ती स्मारिका 76
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